स्कॉटलैंड में कुपोषित कछुए के साथ अंत में Happy Ending हो ही गयी
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कुछ समय पहले स्कॉटलैंड के समुद्रतट पर बुरी और बीमार हालत में बहकर आए मादा कछुए को आखिरकार अच्छे इलाज के बाद 1,700 मील दूर उसके घरेलू जल क्षेत्र अटलांटिक महासागर में छोड़ दिया गया है.
स्कॉटलैंड के समुद्रतट पर बहकर आए एक कछुए को यॉर्कशायर में अच्छे इलाज के बाद 1,700 मील दूर उसके घरेलू जल क्षेत्र अटलांटिक महासागर में छोड़ दिया गया है. यह मादा कछुआ जनवरी 2022 में स्कॉटिश द्वीप इओना के बहुत सर्द समुद्र में कुपोषित और डिहाइड्रेटेड हालत में पाई गई थी. जिसके बाद उसका नाम उसी आईलैंड के नाम पर इओना रखा गया.
पहली बार जब एक राहगीर ने उसे देखा तो संबंधित अधिकारियों को जानकारी दी. तब उसे लोच लोमोंड में सी लाइफ एक्वेरियम में ले जाया गया. इओना की देखभाल टीम का हिस्सा रहे रॉबिन हंटर ने बताया कि जब उसे भर्ती कराया गया था तब उसकी हालत बहुत खराब थी.
उन्होंने कहा- "जब वह पहली बार आई, तो उसकी हालत बहुत अच्छी नहीं थी, और वह बहुत कुपोषित थी. हमें वास्तव में उम्मीद नहीं थी कि वह एक रात भी जिंदा रहेगी. यह पहली बार था जब हमने किसी कछुए को रेस्क्यू किया हो. उन्होंने आगे कहा- " ऐसी किसी चीज का हिस्सा बनना बहुत शानदार है. आपको वास्तव में ऐसा लगता है जैसे आप एक बदलाव ला रहे हैं." हंटर ने बताया कि कैसे देखभाल टीम धीरे-धीरे उसके तापमान और वजन को बढ़ाने में कामयाब रही.
इओना की रिकवरी के बारे में बोलते हुए उन्होंने कहा "बता दूं, यह बिल्कुल अलग दिखने वाले कछुए की तरह था." पुर्तगाल में अजोरेस की लगभग 1,700 मील की दूरी पर अटलांटिक महासागर में छोड़े जाने से पहले इओना को आगे के इलाज के लिए पिछले मई में स्कारबोरो में सी लाइफ में शिफ्ट कर दिया गया था, जहां से उसे इस महीने छोड़ दिया गया. हंटर ने कहा- "अब उसे उस तरह से जाते हुए देखना एक प्यारी फीलिंग है. हालांकि, थोड़ी चिंता तो है क्योंकि आगे क्या पता उसके साथ क्या हो. लेकिन हम मानते हैं कि वो फाइटर है.
अटलांटिक महासागर में इओना की रिहाई ने उन लोगों को प्रभावित किया जो उसकी देखभाल करते थे, जिनमें सी लाइफ स्कारबोरो में पशु देखभाल क्यूरेटर टोड जर्मन भी शामिल थे. जर्मन ने कहा 'यकीन नहीं होता क्योंकि वह लंबे समय से हमारे साथ था, लेकिन उसे जाते हुए देखकर भी खुशी होती है.' बता दें कि छोड़े जाने से पहले, लॉगरहेड कछुए को एक सैटेलाइट टैग लगाया गया है ताकि रिसर्चर रेस्क्यू के एक वर्ष के बाद जंगल में उसके व्यवहार की निगरानी कर सकें.
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