सेकंड वर्ल्ड वॉर में नाजी कैंप से बचकर लौटा था 96 साल का यूक्रेनी शख्स, खारकीव में रूसी बमबारी में गई जान
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रोमनचेंको की मौत की पुष्टि बुचेनवाल्ड कंसंट्रेशन कैंप मेमोरियल इंस्टीट्यूट मे भी की है. इंस्टीट्यूट ने कहा, रोमनचेंको दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बुचेनवाल्ड, पीनेमुंडे, डोरा और बर्गेन बेल्सेन कैंप में बच गए थे.
यूक्रेन पर रूस के हमले लगातार जारी हैं. यूक्रेन के खारकीव में बीते शुक्रवार को हुई बमबारी में 96 साल के बोरिस रोमनचेंको (Romanchenko) की भी मौत हो गई. रोमनचेंको नाजी कैंप (होलोकॉस्ट) में यहूदियों के नरसंहार के दौरान भी जिंदा बचकर यूक्रेन लौट आए थे.
रोमनचेंको की मौत की पुष्टि बुचेनवाल्ड कंसंट्रेशन कैंप मेमोरियल इंस्टीट्यूट ने भी की है. इंस्टीट्यूट ने कहा, रोमनचेंको दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बुचेनवाल्ड, पीनेमुंडे, डोरा और बर्गेन बेल्सेन कैंप में बच गए थे. इंस्टीट्यूट की ओर से कहा गया है कि सभी रोमनचेंको की मौत की खबर से स्तब्ध हैं. रोमनचेंको नाजियों द्वारा किए गए अत्याचारों के बारे में दूसरों को जानकारी देते थे. वे बुचेनवाल्ड-डोरा इंटरनेशनल कमेटी के उपाध्यक्ष थे.
बोरिस रोमनचेंको की पोती यूलिया रोमनचेंको ने सीएनएन से बातचीत में बताया कि साल्टिवका में 18 मार्च को फायरिंग की खबर मिली थी. इसके बाद उसने स्थानीय लोगों से अपने दादा के घर के बारे में पूछा. स्थानीय लोगों ने लूलिया को जलते हुए घर का वीडियो भेजा. लूलिया ने बताया कि साल्टिवका में कर्फ्यू था, ऐसे में वह वहां जल्दी नहीं जा सकती थी. यूलिया बाद में किसी तरह से वहां पहुंची तो उसने देखा कि उसके दादा का घर पूरी तरह से जल गया था. घर में न खिड़की थीं, न बालकनी कुछ भी नहीं बचा था.
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बोरिस की जान चार कैंपों से बच गई थी. लेकिन शुक्रवार को खारकीव में हुई गोलीबारी में उनकी मौत हो गई. 2012 में रोमनचेंको ने बुचेनवाल्ड से जुड़े एक कार्यक्रम में हिस्सा लिया था, जहां उन्होंने एक ऐसी नई दुनिया बनाने की शपथ ली थी, जहां शांति और स्वतंत्र शासन हो.
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