सऊदी-ईरान की संबंध बहाली का क्या होगा अमेरिका और इजरायल पर असर?
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सऊदी अरब और ईरान के बीच संबंध बहाली की घोषणा ने अमेरिका और इजरायल को सबसे अधिक परेशान किया है. अमेरिका ने हालांकि, इस फैसले का स्वागत किया है लेकिन वो अपने सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी चीन की मध्यस्थता में हुए समझौते को लेकर बेहद चिंतित है. अमेरिका और इजरायल दोनों ही चाहते थे कि क्षेत्र में ईरान को अलग-थलग किया जाए, लेकिन उनके इस मंसूबे पर पानी फिर गया है.
मध्य-पूर्व के दो कट्टर प्रतिद्वंद्वियों ईरान और सऊदी अरब ने उस वक्त दुनिया को चौंका दिया जब उन्होंने घोषणा की कि वो अपने राजनयिक संबंधों को फिर से बहाल कर रहे हैं. चीन की मध्यस्थता में दोनों देशों के अधिकारियों के बीच चार दिन तक वार्ता हुई जिसमें सात सालों के कड़वाहट को खत्म कर फिर से रिश्ते बहाल करने पर सहमति बनी. दोनों देशों के बीच रिश्ते बहाल होने की घटना को मध्य-पूर्व के साथ-साथ पूरी दुनिया की राजनीति के लिए अहम माना जा रहा है. इस घटना से खासकर अमेरिका और इजरायल को बहुत फर्क पड़ने वाला है.
ईरान-सऊदी संबंध बहाली से अमेरिका पर असर
ईरान के कट्टर दुश्मन अमेरिका ने इस घटनाक्रम पर बेहद ही सतर्क टिप्पणी की है. उसने कहा है कि वो ऐसे किसी भी पहल का स्वागत करता है. व्हाइट हाउस के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार परिषद के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने कहा, 'बाइडेन प्रशासन इस क्षेत्र में तनाव को कम करने के लिए ऐसी किसी भी पहल का समर्थन करता है. हालांकि, ये देखना भी महत्वपूर्ण होगा कि समझौते के लिए जरूरी कदम उठाए जाएंगे या नहीं.'
भले ही अमेरिका ने सार्वजनिक तौर पर इस पहल का स्वागत किया हो लेकिन मध्य-पूर्व और विश्व की राजनीति में इसके प्रभावों को लेकर उसकी कई चिंताएं हैं. चीन के शीर्ष राजनयिक वांग यी की मध्यस्थता में ईरान-सऊदी के बीच समझौते को मध्य-पूर्व में चीन की बढ़ती भूमिका के तौर पर देखा जा रहा है. मध्य-पूर्व में चीन का बढ़ता प्रभाव अमेरिका के लिए बड़ा सिरदर्द है.
समाचार एजेंसी एएफपी से बातचीत में सऊदी के पूर्व खुफिया प्रमुख तुर्की अल-फैसल ने कहा कि अमेरिका या यूरोप कभी दोनों देशों को साथ लाने में ईमानदार मध्यस्थ की भूमिका नहीं निभा सकते थे जैसा कि चीन ने किया है. फैसल ने कहा, 'चीन ही ऐसा देश था जो यह समझौता करना सकता था क्योंकि उसके हम दोनों के साथ ही अच्छे संबंध हैं.'
दूसरी तरफ, ईरान के साथ सऊदी अरब के संबंध बहाली की घोषणा से भी अमेरिका को बड़ा झटका लगा है. अमेरिका की हमेशा से यही कोशिश रही है कि ईरान को किसी तरह अलग-थलग किया जाए. इसके लिए उसने ईरान पर कई कड़े प्रतिबंध भी लगा रखे हैं.