
संत का शाप या प्रिंस की सनक...क्यों और कैसे हुआ नेपाल के शाही परिवार का 'The End'!
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Nepal royal massacre: 21 साल हो गए. लेकिन अब भी नेपाल के शाही महल में कत्लेआम की कहानी क्राइम थ्रिलर जैसी लगती है. एशिया के सबसे पुराने रजवाड़े में से एक इस शाही परिवार के खात्मे की कहानी में एक राजकुमार के विलेन बन जाने का कथानक है. वहीं इस स्टोरी में एक मिथकीय श्राप के सच्चाई में तब्दील होने की रोमांचक गाथा भी है.
बात बहुत पुरानी है. लगभग 300 साल पुरानी कथा. नेपाल के गोरखा जिले के घने जंगलों में राज परिवार के एक राजकुमार का सामना एक वृद्ध संत से हुआ. वे बूढ़े तो थे लेकिन उनका ओज गजब का था. चेहरे से निकल रहा आभामंडल बता रहा था कि वे सचमुच पहुंचे हुए संत हैं. संस्कारों से परिपूर्ण इस तरुण ने राज परिवार की परंपरा के अनुसार इस महात्मा का अभिवादन किया. महात्मा ने अनुनय करते हुए इस किशोर से कहा कि उन्हें दही से भरा एक कटोरा चाहिए. बीच जंगल में साधु की इस मांग से ये युवा थोड़ा चकित तो हुआ, लेकिन संन्यासी की इस मांग को पूरा करना उसके लिए कोई बड़ी बात नहीं थी.
भागता हुआ वह अपने महल पहुंचा और दही का कटोरा लेकर उसी जगह पर पहुंच गया. महात्मा उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे. उन्होंने लड़के से दही का कटोरा लिया और गटागट सारा दही पी गए. युवक मुग्ध था, संत पर उसकी नजरें टिकी थी. महात्मा कुछ क्षण रुके. फिर उन्होंने जो किया वो सचमुच हतप्रभ करने वाला था. उन्होंने उसी कटोरे में सारा दही पेट से निकाल दिया. कहने का मतलब ये कि उन्होंने उसी कटोरे में सारा दही उल्टी कर दिया.
इसके बाद का घटनाक्रम तो और भी चौंकाने वाला है. महात्मा ने दोनों हाथों से कटोरे को पकड़ा और राजकुमार की ओर बढ़ाते हुए कहा-पुत्र अब ये सारा दही तुम पी जाओ. युवा प्रिंस इस संत की धृष्टता पर हैरान था. वह इस गुस्ताखी का अर्थ नहीं समझ पा रहा था. अनुशासन और संयम जैसे संस्कार तो राजमहल में उसने सीखे थे. लेकिन इस संत का 'असंतुलित' व्यवहार देखकर उसका राजसी रक्त उबल पड़ा. अनादर की भावना से उसने दही का कटोरा लिया, उसे अपने छाती के नजदीक किया और कटोरे के पेंदे से अपना हाथ हटा दिया. छन्न की आवाज के साथ कटोरा जमीन पर गिरा और युवक के दोनों पैर दही से लथपथ हो गए.
बाबा गोरखनाथ का श्राप, किवदंतियां और गल्प
नेपाल की किवदंतियां, तराई से निकली लोक कथाएं, जनमानस के गल्प बताते हैं ये वृ्द्ध संन्यासी कोई और नहीं बल्कि बाबा गोरखनाथ थे. वहीं गोरखनाथ जो नेपाल के गोरखा साम्राज्य के संरक्षक माने जाते थे. और जो युवक दही लेकर उनके सामने पहुंचा वो थे आधुनिक नेपाल के संस्थापक सम्राट पृथ्वी नारायण शाह.
आगे की ये कहानी कुछ इस तरह है. हाथों से दही का कटोरा गिराने के बाद पृथ्वी नारायण शाह वहां से जाने लगे. लेकिन गोरखनाथ की परीक्षा में वह कामयाब नहीं हो सके थे. उनके इस आचरण से रुष्ट इस महात्मा ने उन्हें अपना परिचय दिया. गोरखा साम्राज्य के पूज्य को अपने सामने देखकर पृथ्वी नारायण शाह हक्के- बक्के और चकित थे. वे कुछ बोल पाते इससे पहले ही उस महात्मा ने दही से सने पृथ्वी नारायण शाह के पैरों को देखते हुए उन्हें श्राप दिया- इस भूभाग पर तुम्हारे वंश का शासन उतने ही पीढ़ियों तक चलेगा जितनी अंगुलियां तुम्हारे पैरों में हैं. पृथ्वी नारायण शाह ने देखा- एक, दो, तीन... उनके दोनों पैरों की पूरी दस की दस अगुलियां दही में डूबी थीं. महात्मा ने कहा- 11वां नरेश अंतिम होगा.

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