विनोद कुमार शुक्ल ने साहित्य का जो घर बनाया है, वह रोशनी में दिप रहा है…
The Wire
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: विनोद जी की आधुनिकता रोज़मर्रा के निम्न-मध्यवर्गीय जीवन में रसी-बसी रही है. उनके यहां जो स्थानीयता आकार पाती है वह मानवीय उपस्थिति, मानवीय विडंबना और मानवीय ऊष्मा की एक त्रयी को चरितार्थ, उत्कट और सघन करती है.
तीन वर्ष पहले उत्तर-पूर्व दिल्ली में हुई हिंसा को लेकर भूतपूर्व सिविल सेवकों, राजनयिकों, पुलिस अधिकारियों के ‘संवैधानिक आचरण समूह’ ने कुछ भूतपूर्व न्यायाधीशों और सिविल सेवकों की एक नागरिक समिति बनाकर उनसे इस हिंसा की पड़ताल करने और एक तथ्यपरक रिपोर्ट देने का आग्रह किया. यह रिपोर्ट पिछले पिछले अक्टूबर में सार्वजनिक कर दी गई. उसका शीर्षक है ‘अनिश्चित न्याय’.
समिति में शामिल सदस्यों में एक सर्वोच्च न्यायालय के भूतपूर्व न्यायाधीश, उच्च न्यायालय के एक मुख्य न्यायाधीश, दिल्ली और पटना उच्च न्यायालयों के भूतपूर्व दो न्यायाधीश और केंद्र सरकार के एक भूतपूर्व गृह सचिव थे. इस रिपोर्ट पर समूह द्वारा तीन घंटे का एक लंबा विचार-विमर्श सत्र इस हिंसा के तीन वर्ष होने पर आयोजित हुआ.
हमारा समय ऐसा है कि हम अनेक अनिश्चयों से घिरे हैं जिनमें से कुछ तो मनुष्य की नश्वरता आदि को लेकर शाश्वत हैं. पर ऐसे बहुत से हैं जो इस समय राजनीति, सत्ता, धर्म, मीडिया आदि ने या तो उपजाए हैं या गहरे-उत्कट किए हैं. इनमें दुर्भाग्य से मानवीय अधिकारों, मानवीय गरिमा, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और न्याय से संबंधित अनिश्चय हैं.
दिल्ली हिंसा के तीन बरस बाद स्थिति यह है कि दिल्ली पुलिस के अदालत में दाखि़ल एक शपथ पत्र में कहा गया है कि कुल 758 प्रथम सूचनापत्र रजिस्टर किए गए हैं, 367 मामलों में चार्जशीट अदालत में दाखि़ल की गई हैं, 384 मामलों में जांच तहकीकात चल रही है और सिर्फ 62 मामलों में अदालती कार्रवाई शुरू हो पाई है.