
रूस से नहीं बनी बात, मगर UAE से रुपये में तेल खरीद पर भारत को हाथ लगी ये बड़ी सफलता!
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भारत कई देशों के साथ रुपये में व्यापार की कोशिश कर रहा है. रूस के साथ रुपये में व्यापार की कोशिशें नाकाम होने के बाद एक अच्छी खबर आई है. भारत अब खाड़ी देश संयुक्त अरब अमीरात के साथ स्थानीय मुद्रा में व्यापार कर रहा है.
रुपये में व्यापार की नरेंद्र मोदी सरकार को कोशिशों को उस वक्त बड़ा झटका लगा था जब रूस के साथ रुपया-रूबल का भुगतान तंत्र स्थापित करने की भारत की बातचीत असफल रही थी. हालांकि, अब यूएई के साथ स्थानीय मुद्रा में व्यापार की कोशिशें रंग लाई हैं. केंद्र सरकार ने सोमवार को कहा कि भारत ने संयुक्त अरब अमीरात के साथ मिलकर अपनी स्थानीय मुद्राओं में द्विपक्षीय व्यापार का भुगतान शुरू कर दिया है.
सरकार ने जानकारी दी कि भारत का एक शीर्ष रिफाइनर यूएई से दस लाख बैरल तेल की खरीद के लिए रुपये में भुगतान कर रहा है. यूएई में भारतीय दूतावास की तरफ से जारी एक बयान के अनुसार, इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (IOC) ने अबू धाबी नेशनल ऑयल कंपनी (ADNOC) को कच्चे तेल के लिए रुपये में भुगतान किया है.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, रुपये में यह लेनदेन इसलिए संभव हो पाया क्योंकि यूएई के एक सोना निर्यातक ने भारत में एक खरीदार को लगभग 12 करोड़ 84 लाख रुपये में 25 किलोग्राम सोने की बिक्री की है. इसके बाद भारतीय बैंक के यूएई खाते में 12 करोड़ 84 लाख रुपये मूल्य के दिरहम जमा हो गए. ओआईसी यूएई के भारतीय बैंक खाते में रुपये जमा कर तेल का भुगतान कर रहा है.
भारत ने जुलाई के महीने में यूएई के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किया था जिसके बाद उसे यूएई के साथ डॉलर के बजाय रुपये में व्यापार निपटाने की अनुमति मिल. यूएई के साथ इस समझौते से भारत को बहुत फायदा हुआ है क्योंकि इससे डॉलर के रूपांतरण की लागत बच रही है और व्यापार के लिए रुपये को बढ़ावा मिल रहा है.
पीएम मोदी की यूएई यात्रा के दौरान दोनों देश क्रॉस बॉर्डर पेमेंट की सुविधा के लिए रियल टाइम पेमेंट लिंक स्थापित करने पर भी सहमत हुए थे. भारत और यूएई के बीच व्यापार की बात करें तो, वित्त वर्ष 2022-23 में द्विपक्षीय व्यापार 84.5 अरब डॉलर का था.
भारत यूएई की तरह ही विश्व के अन्य देशों के साथ स्थानीय मुद्रा में व्यापार को बढ़ाने का इच्छुक है. इससे रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण के भारत के प्रयासों को तो बल मिलेगा ही साथ ही भारत इसके जरिए वैश्विक व्यापार में मंदी के बीच निर्यात को बढ़ावा देना चाहता है.

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