रूसी तेल जहाजों पर बढ़ा हमले का खतरा! भारत पर क्या असर?
AajTak
हाल के दिनों में लाल सागर से गुजरने वाले जहाजों पर हूतियों ने रॉकेट हमले किए हैं. रूस से भारत आने वाले कच्चे तेल के जहाज लाल सागर के जरिए ही भारत आते हैं जिनपर अब भी हूतियों के हमले का खतरा बना हुआ है. बावजूद इसके रूस से कच्चे तेल का आयात कम नहीं हुआ है.
गुरुवार को एक रिपोर्ट में कहा गया कि लाल सागर में जहाजों पर हूती विद्रोहियों को हमलों के बावजूद भी भारत में रूसी तेल की मांग बनी हुई है. वैश्विक ऊर्जा पर नजर रखने वाली वेबसाइट S&P ग्लोबल कमोडिटी इनसाइट्स ने कहा है कि हूतियों के हमले के बाद भी रूस से भारत की तेल खरीद में कोई बदलाव नहीं देखा गया है.
2023 के पहली छमाही में भारत ने रूस से भारी मात्रा में तेल की खरीद की लेकिन बाद के महीनों में रूसी तेल की खरीद में कमी आई है. लेकिन अब भी रूस भारत का शीर्ष तेल आपूर्तिकर्ता बना हुआ है. भारत रूस से अपने इस्तेमाल का 35% से अधिक तेल खरीद रहा है.
रिपोर्ट में कहा गया, 'लाल सागर में जहाजों पर हो रहे हमलों के बावजूद, रूस से भारत के कच्चे तेल का आयात अब तक अप्रभावित रहा है. समुद्र में आवाजाही करने वाले जहाजों के आंकड़ों के अनुसार, 27 दिसंबर तक रूस से भारतीय रिफाइनरों के लिए आ रहा कच्चा तेल लाल सागर से होकर ही आ रहा है. रूस ने समुद्री जहाजों में पर्याप्त मात्रा में तेल जमा कर रखा है जो निर्यात के लिए है. इसमें 4.37 करोड़ बैरल तेल भारत आना है.'
भारत के लिए निर्धारित 4.36 करोड़ बैरल तेल में से 1.92 करोड़ बैरल तेल अरब सागर, पूर्वी हिंद महासागर और दक्षिण-पूर्व एशिया में है. अगर कभी किसी कारण रूसी तेल की आपूर्ति बाधित होती है तब भारतीय रिफाइनर्स और व्यापारी इस तेल का इस्तेमाल कर सकते हैं.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि लाल सागर में अगर हूतियों के हमले में तेजी आती है, फिर भी भारत को रूसी तेल की कोई कमी नहीं होगी. अनुमान है कि रूस से भारत के कच्चे तेल का आयात देश के कुल कच्चे तेल के आयात का 35-45% के बीच रह सकता है, अगर रूस रियायती दरों पर भारत को तेल मुहैया कराता रहा तो.
रूसी तेल पर अमेरिकी प्रतिबंध सख्त
रूस के कजान में ब्रिक्स सम्मेलन के इतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ईरान के राष्ट्रपति मसूद पजेश्कियन ने पश्चिम एशिया में शांति की पहल और भारत-ईरान संबंधों को मजबूत बनाने पर चर्चा की. चाबहार पोर्ट और INSTC जैसे अहम परियोजनाओं पर ध्यान केन्द्रित करते हुए, भारत ने क्षेत्रीय बातचीत और कूटनीति की वकालत की.