राष्ट्रपति पद के लिए विपक्षी खेमे में इन चार चेहरों पर चर्चा, क्या राजनाथ बना पाएंगे आम सहमति?
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राष्ट्रपति चुनाव को लेकर राजनाथ सिंह और जेपी नड्डा ने बातचीत का दौर शुरू कर दिया है. कई पार्टियों से बात की जा रही है. आम सहमति बनाने पर जोर है.
अगले महीने होने वाले राष्ट्रपति चुनाव को लेकर देश की सियासत गरमा गई है. बैठकों का दौर शुरू हो चुका है, कई नामों को लेकर रजानीतिक गलियारों में अटकलें लग रही हैं और नंबर गेम में अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश जारी है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आज बुधवार को विपक्षी दलों की दिल्ली में बैठक की है. उस बैठक में कई नामों पर चर्चा हुई, जोर देकर कहा गया कि बीजेपी के सामने एक संयुक्त राष्ट्रपति उम्मीदवार खड़ा किया जाए.
विपक्ष की बैठक में क्या हुआ?
जो नाम बैठक के दौरान उठे उनमें एनसीपी प्रमुख शरद पवार, महात्मा गांधी के पोते गोपालकृष्ण गांधी, एनके प्रेमचंद्रन और एनसी प्रमुख फारूक अब्दुल्ला शामिल हैं. सबसे पहले चर्चा शरद पवार के नाम पर रही. ममता ने खुद उन्हीं के नाम को आगे किया. ज्यादातर पार्टियों ने एक सुर में उनकी उम्मीदवारी का समर्थन किया और उन्हे संयुक्त उम्मीदवार घोषित कर देने की पैरवी की. लेकिन खुद शरद पवार ने खुद को उस रेस से ही बाहर कर लिया. उन्होंने साफ कर दिया कि अभी उन्हें सक्रिय राजनीति में ही रहना है. जब शरद पवार नहीं माने, उसके बाद फिर ममता बनर्जी ने नया नाम उठाया. इस बार महात्मा गांधी के पोते गोपालकृष्ण गांधी को उम्मीदवार बनाने की बात हुई.
लेफ्ट पार्टियां तो पहले से ही गोपालकृष्ण गांधी का समर्थन कर रही थीं. शरद पवार के साथ सीताराम येचुरी की बैठक में भी उनके नाम पर गहन मंथन हो चुका था. ऐसे में उनके नाम को लेकर भी तमाम कयास लगाए गए. बैठक में एक और नाम पर चर्चा हुई, जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और एनसी प्रमुख फारूक अब्दुल्ला. अब क्योंकि बैठक में फारूक की जगह उनके बेटे उमर शामिल हुए थे, ऐसे में उन्होंने साफ कर दिया कि उनकी अनुपस्थिति में उनके नाम पर कोई चर्चा ना की जाए. इस तरह उनके नाम को लेकर भी सहमति अभी नहीं बन पाई.
साझा उम्मीदवार...लेकिन कौन?
बैठक के बाद प्रेस कॉन्फ्रेस के दौरान सिर्फ ये कहा गया कि विपक्ष एक संयुक्त उम्मीदवार मैदान में उतारेगा. ऐसे शख्स को जिम्मेदारी दी जाएगी, जो लोकतंत्र को मजबूत कर सके. लेकिन किसको ये जिम्मेदारी दी जाएगी, ये सस्पेंस ही रह गया. वैसे अभी तक नाम का ऐलान नहीं हुआ है, लेकिन ममता बनर्जी इस राष्ट्रपति चुनाव को काफी गंभीरता से ले रही हैं. उनकी नजरों में तो ये राष्ट्रपति चुनाव ही 2024 की लड़ाई की प्रस्तावना है. ऐसे में विपक्षी एकजुटता का इस मौके पर दिखना जरूरी हो जाता है.
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