
रंग लाई मुहिम, गठित हुआ 'INDIA'... लेकिन कांग्रेस और RJD के बीच मझधार में कैसे फंस गए हैं नीतीश?
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नीतीश कुमार ने विपक्षी दलों को एकजुट करने की कवायद शुरू की थी. नीतीश के तैयार किए आधार पर विपक्षी एकजुटता आकार ले चुकी है लेकिन नीतीश कुमार कांग्रेस और आरजेडी के बीच मझधार में फंस गए हैं. कैसे?
लोकसभा चुनाव के लिए सियासी बिसात बिछ चुकी है. सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के जवाब में 26 विपक्षी दलों ने मिलकर इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इनक्लूसिव अलायंस (I.N.D.I.A.) की नींव रख दी है. एनडीए के खिलाफ बने नए गठबंधन का असली टेस्ट तो 2024 के लोकसभा चुनाव में होगा लेकिन गठबंधन के नेतृत्व को लेकर अभी से ही घमासान मच गया है. नए गठबंधन के सामने नेतृत्व को लेकर फैसला लेने की चुनौती आ खड़ी हुई है.
इस नए गठबंधन का सांगठनिक ढांचा क्या होगा? ये कांग्रेस के नेतृत्व वाले पुराने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन पर आधारित होगा या बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के मॉडल पर? कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने बेंगलुरु की बैठक के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक सवाल के जवाब में कहा कि गठबंधन के घटक दलों के बीच समन्वय बनाए रखने के लिए कोऑर्डिनेशन कमेटी बनाई जाएगी जिसमें 11 सदस्य होंगे. मुंबई में होने वाली अगली बैठक में को-कन्वेनर बनाए जाएंगे. खड़गे के बयान से भी संयोजक को लेकर स्थिति साफ नहीं हो सकी लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नाम इस रेस में सबसे आगे माना जा रहा है.
नीतीश संयोजक की रेस में क्यों आगे
नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) का बिहार में कांग्रेस के साथ गठबंधन है. बिहार में महागठबंधन की सरकार है और इसमें जेडीयू, कांग्रेस के साथ ही राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) भी शामिल है. लेफ्ट पार्टियां भी महागठबंधन सरकार का बाहर से समर्थन कर रही हैं. नीतीश ने एक कार्यक्रम में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी में एनडीए को हराने के लिए एकजुट विपक्ष का मंत्र दिया था. उन्होंने ये भी कहा था कि कांग्रेस को इसके लिए जल्दी पहल करनी चाहिए.
एकजुट विपक्ष के मंत्र पर आंतरिक मसलों में उलझी कांग्रेस शिथिल पड़ी रही तो नीतीश खुद आगे और पूरब से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण भारत की यात्राएं की. ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, शरद पवार, उद्धव ठाकरे, एमके स्टालिन, अरविंद केजरीवाल के साथ ही कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी से मुलाकात की. नीतीश ने पटना से दिल्ली एक कर दिया और बार-बार तिथि बदली, तमाम शंका-आशंकाओं के बादल भी घिरे लेकिन अंत में वे पटना में वे विपक्षी एकजुटता के मंच पर 15 पार्टियों को लाने में सफल रहे.
अब, जबकि दो बैठकों के बाद गठबंधन आकार ले चुका है. आइडिया देने से लेकर उसके मूर्त रूप दिए जाने तक, कर्णधार की भूमिका में रहे नीतीश ने ये साबित भी कर दिया है कि उनमें वो कौशल है कि वे अलग-अलग पृष्ठभूमि के दलों को साथ जोड़े रख सकें. 2015 से ही बिहार की सत्ता पर काबिज नीतीश ने 18 साल की सरकार में बीजेपी के साथ भी गठबंधन सरकार चलाई है और विपरीत ध्रुव मानी जाने वाली कांग्रेस, लेफ्ट पार्टियों के साथ भी. नीतीश ने जिस आरजेडी के विरोध की बुनियाद पर राजनीति कर सूबे की सत्ता के शीर्ष तक का सफर तय किया, उसके साथ भी गठबंधन कर सरकार चलाने में गुरेज नहीं किया.

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