
महाविकास अघाड़ी में आना क्या उद्धव ठाकरे के लिए आत्मघाती साबित हुआ? | Opinion
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उद्धव ठाकरे को बीजेपी की ही पॉलिटिकल लाइन सूट करती थी, लेकिन वो तो शिवसेना को बदलने में जुटे हुए थे. 2014 में एक छोटी सी झलक भी दिखाई पड़ी थी, लेकिन 2019 आते आते वो जिद पर उतर आये, बीजेपी का साथ छोड़ दिया - और साथ छूटते ही एक एक करके सब कुछ उनके हाथों से फिसलता गया.
जिंदगी में हर फैसला जोखिमभरा होता है. सोच समझ कर लिये गये फैसलों में भी एरर-ऑफ-जजमेंट का स्कोप बना रहता है. माना जाता है कि जोखिमभरे फैसले ही कामयाबी की राह तय करते हैं - लेकिन उद्धव ठाकरे के साथ तो उल्टा हो गया, 2019 में उद्धव ठाकरे ने भी ऐसा ही एक फैसला लिया था.
बीजेपी और शिवसेना 80 के दशक में ही करीब आ गये थे, लेकिन साझी सत्ता हाथ लगी 90 के दशक में. दोनो के बीच हिंदुत्व की राजनीति कॉमन थी, लेकिन जैसे ही उद्धव ठाकरे बीजेपी का साथ छोड़कर कांग्रेस और शरद पवार के साथ चले गये, मुसीबतें शुरू हो गईं.
महाराष्ट्र की राजनीति में जो कुछ भी उद्धव ठाकरे के साथ हुआ, आगे चलकर वो सब शरद पवार के साथ भी हुआ है. और, शरद पवार ने उद्धव ठाकरे जैसा कोई कदम भी आगे नहीं बढञाया था. उद्धव ठाकरे ने अपनी पुरानी विचारधारा को कट्टर से नरम और अति-नरम हिंदुत्व में तब्दील करने की कोशिश की थी. राहुल गांधी और शरद पवार के साथ रह कर भी उद्धव ठाकरे ने खुद को हिंदूवादी नेता बनाये रखने की कोशिश की, लेकिन कदम कदम पर फेल होते गये.
बीजेपी तो उद्धव ठाकरे के खिलाफ आक्रामक थी ही, राज ठाकरे भी सुर में सुर मिलाने लगे थे - और, आखिर में तो एकनाथ शिंदे भी साथ हो गये. एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद लोकसभा चुनाव के नतीजों ने उद्धव ठाकरे के मन में थोड़ी उम्मीद बढ़ाई, लेकिन विधानसभा चुनाव में तो लगता है जैसे सबकुछ खत्म हो गया है. लोकसभा चुनाव 2024 में उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र की कुल 48 में से 9 सीटों पर जीत हासिल की थी. लेकिन विधानसभा की 288 सीटों में से उद्धव ठाकरे अपने हिस्से में महज 20 ही जुटा पाये, जबकि उनके पुराने साथी एकनाथ शिंदे 57 सीटें जीतने में कामयाब रहे. 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में शिवसेना को 56 सीटें मिली थीं. दोनो के हिस्से की सीटें मिला दें तो 77 सीटें हुईं. ज्यादा ही है. 2019 में उद्धव ठाकरे पुराने गठबंधन के साथ 124 सीटों पर लड़े थे, लेकिन इस बार उनके हिस्से में 95 सीटें ही आई थीं.
महाराष्ट्र की राजनीति में एक दौर ऐसा भी रहा जब बाला साहेब ठाकरे के बारे में कहा जाता था कि वो रिमोट से सरकार को कंट्रोल करते थे. ये तब की बात है जब 1995 में महाराष्ट्र में शिवसेना-बीजेपी की सरकार बनी थी - लेकिन, देखिये. क्या से क्या हो गया देखते देखते.
जब उद्धव देखते रह गये, और पूरी पार्टी हाथ से फिसल गई

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