
मगही पॉलिटिक्स... जानिए कैसे झारखंड और बंगाल की सियासत बिहार में डालती है असर
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मगध का इलाका बिहार की सियासत में खास मुकाम रखता है. कभी आरजेडी का गढ़ रहा मगध नीतीश कुमार की जेडीयू और एनडीए के साथ हो लिया लेकिन पिछले चुनाव में लालू की पार्टी मगध का किला बचाने में कामयाब रही थी. इस इलाके की पॉलिटिक्स पर झारखंड और बंगाल की सियासत भी असर डालती है.
मगही नाम सुनते ही जेहन में एक तस्वीर उभरती है, पान की. बिहार कोकिला शारदा सिन्हा को मगही पान इतने पसंद थे कि एक बार उन्होंने पान खाकर गाया था- '...पान खाए सैयां हमार'. चटख हरे रंग की मगही पान की पत्ती में रेशे कम होते हैं और ये इतनी घुलनशील होती है कि मुंह में रखे-रखे ही घुल जाए. कुछ ऐसी ही तासीर है मगही पॉलिटिक्स की भी.
मगध के लोग जिस राजनीतिक दल के साथ हो लें, समझिए उसका रंग बिहार की सियासत में चटख हो जाए. कभी राष्ट्रीय जनता दल का गढ़ रहा ये इलाका 'सुशासन बाबू' नीतीश कुमार के उभार के बाद उनकी अगुवाई वाले जनता दल (यूनाइटेड) और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का मजबूत गढ़ बन गया. बिहार सीरीज में आज बात करते हैं इसी मगध क्षेत्र की, मगही भाषा बोलने वाले क्षेत्र की राजनीति की.
मगध क्षेत्र में ये इलाके
बिहार के मगध क्षेत्र की बात करें तो इस नाम से एक प्रमंडल भी है. मगध प्रमंडल में पांच जिले आते हैं गया, अरवल, जहानबाद, औरंगाबाद और नवादा. मगध प्रमंडल के इन पांच जिलों के साथ ही नालंदा, पटना, शेखपुरा, लखीसराय और जमुई में भी मगही बोली जाती है. बांका जिले के कुछ हिस्से भी मगध क्षेत्र में रखे जाते हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद भी नालंदा जिले से ही आते हैं. सूबे के पहले मुख्यमंत्री श्री बाबू (बाबू श्रीकृष्ण सिंह) का शेखपुरा और पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी का गया जिला भी मगध में ही आता है. मगध प्रमंडल के पांच जिलों की ही बात करें तो यहां विधानसभा की 26 सीटें हैं.
एनडीए ने 2010 में भेद दिया था आरजेडी का किला
मगध की बात करें तो ये इलाका कभी लालू यादव की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) का गढ़ हुआ करता था. आरजेडी की सत्ता से विदाई के बाद इस इलाके में एनडीए जड़ें जमाने में कामयाब रहा. साल 2010 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी-एनडीए की लहर इस कदर चली कि मगध प्रमंडल में आरजेडी महज एक सीट पर सिमट गई थी. तब बेलागंज से जीते सुरेंद्र प्रसाद यादव मगध प्रमंडल के इकलौते आरजेडी विधायक थे. एक सीट से निर्दलीय उम्मीदवार को जीत मिली थी और बाकी 24 सीटें एनडीए के खाते में गई थीं.

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