भोपाल गैस त्रासदी: अदालत ने कहा- केंद्र 30 साल बाद समझौते के मामले को फिर नहीं खोल सकता
The Wire
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 2-3 दिसंबर 1984 की दरमियानी रात यूनियन कार्बाइड कारखाने से ज़हरीली गैस के रिसाव के चलते हजारों लोगों की मौत हो गई थी. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड की उत्तराधिकारी कंपनियों से अतिरिक्त 7,844 करोड़ रुपये मुआवज़े की मांग की थी.
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन (यूसीसी) की अनुवर्ती कंपनियों से अतिरिक्त 7,844 करोड़ रुपये मांगने के लिए उपचारात्मक याचिका (क्यूरेटिव पिटीशन) दाखिल करने पर मंगलवार को केंद्र से नाखुशी जताई.
न्यायालय ने कहा कि वह न्याय-अधिकार क्षेत्र की ‘मर्यादा’ से बंधा है और सरकार कंपनी के साथ हुए समझौते को 30 साल से अधिक समय बाद दोबारा नहीं खोल सकती.
शीर्ष अदालत ने कहा कि लोगों को पसंद आना न्यायिक समीक्षा का आधार नहीं हो सकता है. उसने कहा कि वैश्वीकृत दुनिया में यह अच्छा नहीं लगता कि भले ही आपने भारत सरकार के साथ कुछ तय किया हो, इसे बाद में फिर से खोला जा सकता है.
पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा, ‘अदालत ऐसी किसी चीज में नहीं उतरेगी जो स्वीकार्य नहीं है. मामले के पक्षों के बीच एक समझौता हुआ था और अदालत ने उसे मंजूरी दी थी. अब उपचारात्मक न्यायाधिकार के अधीन हम इस समझौते को फिर से नहीं खोल सकते. किसी मामले में हमारे फैसले का व्यापक प्रभाव होगा. आपको समझना होगा कि उपचारात्मक न्यायक्षेत्र किस सीमा तक लागू हो सकता है.’