
भारत में पहले भी लगता था इनहेरिटेंस टैक्स, जानिए 1985 में खत्म होने वाले इस कर सिस्टम की कहानी
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सैम पित्रोदा की 'अमेरिका जैसा विरासत कर' वाले बयान पर सियासी घमासान मच गया है. हालांकि विरासत कर की अवधारणा भारत के लिए नई नहीं है. भाजपा और कांग्रेस दोनों ने अतीत में इस विचार पर विचार किया है और दोनों दलों के नेता इसके पक्षधर रहे हैं.
सैम पित्रोदा द्वारा "अमेरिका जैसा विरासत कर" की वकालत करने के बाद भारत में चुनावी माहौल गर्म हो गया है. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने पित्रोदा के बयान पर सफाई देते हुए ट्वीट किया, "कांग्रेस की विरासत कर यानि इनहेरिटेंस टैक्स लगाने की कोई योजना नहीं है. हकीकत यह है कि राजीव गांधी ने 1985 में संपत्ति शुल्क समाप्त कर दिया था."
गौर करने वाली बात ये है कि विरासत कर की अवधारणा भारत के लिए नई नहीं है. इस तरह के कर को कुछ कुछ देशों में संपत्ति शुल्क या "मृत्यु कर" के रूप में जाना जाता है. 1985 में खत्म किए जाने से पहले यह लगभग चार दशक तक भारत में बहुत प्रचलित था.
तब से, इस तरह के कर को वापस लाने का विचार पूर्ववर्ती कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार और बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार दोनों ने किया था. पूर्व वित्त मंत्री पी.चिदंबरम ने 2011-2013 के बीच कई मौकों पर सरकारी संसाधनों को बढ़ाने के लिए विरासत कर लगाने का उल्लेख किया. इसी तरह, एनडीए सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान, पूर्व वित्त राज्य मंत्री जयंत सिन्हा इस विचार के प्रबल समर्थक थे.
लेकिन आपका यह जानना जरूरी है कि विरासत कर या संपत्ति शुल्क क्या था? भारत में इसे कैसे लगाया गया और फिर इसे क्यों खत्म कर दिया गया? चलिए इसी को समझने की कोशिश करते हैं.
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1953-85 के बीच विरासत कर कैसे लगाया गया?

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