भारतीय कुश्ती महासंघ यौन उत्पीड़न मामले में न्याय मिलने की कितनी उम्मीद है?
The Wire
भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के ख़िलाफ़ यौन उत्पीड़न के आरोपों को लेकर पहलवानों के प्रदर्शन के बाद सरकार और भारतीय ओलंपिक संघ ने अपनी-अपनी समितियां गठित की हैं. हालांकि, यह समितियां भी सवालों के घेरे में हैं.
नई दिल्ली: मैट और मेडल का दंगल छोड़ देश के प्रतिष्ठित पहलवान- बजरंग पुनिया, विनेश फोगाट, अंशु मलिक, साक्षी मलिक और सरिता मोर 18 जनवरी को जंतर-मंतर पहुंचे और भारतीय कुश्ती संघ (डब्ल्यूएफआई) के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ तानाशाही और यौन उत्पीड़न का आरोप लगाए. हमें आश्वासन दिया गया था कि Oversight Committee के गठन से पहले हमसे परामर्श किया जाएगा। बड़े दुख की बात है कि इस कमेटी के गठन से पहले हमसे राय भी नहीं ली गई. @narendramodi @AmitShah @ianuragthakur
जनता मामले को समझने का प्रयास कर ही रही थी कि प्रदर्शन के तीसरे दिन खेल मंत्रालय ने मामले को संज्ञान में लेते हुए एक समिति गठित कर दी और साथ ही भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) ने भी एक समिति का गठन किया. इन दोनों समितियों की अध्यक्षता ओलिंपियन मुक्केबाज़ और राज्यसभा की पूर्व सांसद मैरी कॉम कर रही हैं. — Vinesh Phogat (@Phogat_Vinesh) January 24, 2023
और इन सब के बीच सोशल मीडिया पर इस मामले को लेकर राजनीतिक क़यास लगने शुरू हो गए. बृजभूषण शरण सिंह ख़ुद इस प्रदर्शन को राजनीतिक बताया. लेकिन विरोध, आरोपों और जांच के इर्द-गिर्द मच रहे शोर से इतर कुछ ज़रूरी सवाल हैं- जैसे मामले को राजनीतिक कहना किस हद तक ठीक है? इस मामले पर अखाड़ों की क्या प्रतिक्रिया है? इस पूरे मामले की जांच में खेल को लेकर क़ानून की कितनी भूमिका है? जांच किस तरह से किस दिशा में जाएगी?
जहां कुश्ती के अखाड़े इस मुद्दे पर विभाजित लगे वहीं इस मामले में खेल से जुड़े क़ानून की भूमिका अहम हो जाती है. भारत में खेल से जुड़ा कोई विस्तृत क़ानून तो नहीं है लेकिन राष्ट्रीय खेल संहिता 2011 के अनुसार कार्रवाई होती है.