
बीते हुए को भुलाकर अमेरिका करेगा तालिबान से दोस्ती, क्या होगा अगर काबुल में US एंबेसी खुल जाए?
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अमेरिका ने तीन तालिबानी नेताओं, जिनमें अफगानिस्तान के गृह मंत्री और हक्कानी नेटवर्क के प्रमुख सिराजुद्दीन हक्कानी भी शामिल हैं, पर लगाए गए इनाम हटा दिए. साथ ही एक बड़ी रकम अनफ्रीज कर दी. यह पॉलिसी में बड़े शिफ्ट का संकेत है. तो क्या दशकों बाद यूएस भी तालिबान को अपना सकता है?
अगस्त 2021 में जब अमेरिका ने अफगानिस्तान से अपनी सेना हटाई तो देश में बड़ा बदलाव हुआ. तुरंत ही तालिबान ने उसपर कब्जा कर लिया. तब से काबुल पर उसी का राज है. हालांकि लगभग किसी भी देश ने इसे सरकार के तौर पर मान्यता नहीं दी. अब अमेरिका अगर तालिबान को लेकर नर्म पड़े तो दुनिया के सारे देशों पर उससे दोस्ती का दबाव बनेगा. ऐसे संकेत दिखने शुरू भी हो चुके.
यूएस ने तालिबान के तीन नेताओं पर से इनामी राशि हटा ली. इसमें वे लोग भी शामिल हैं, जिनपर अफगानिस्तान की पूर्व सरकार के खिलाफ हमलों का आरोप है, जिसे खुद अमेरिका का सपोर्ट था. हमले में अमेरिकी नागरिक समेत छह लोग मारे गए थे. अब इनाम हटाने के बाद रिवार्ड्स फॉर जस्टिस वेबसाइट से उनके नाम हट जाएंगे.
अमेरिका ने यह कदम अमेरिकी कैदी जॉर्ज ग्लेजमैन की रिहाई के बाद उठाया, जो दो साल से ज्यादा समय से काबुल की जेल में थे. कई और रिपोर्ट्स भी हैं, जो दावा कर रही हैं कि यूएस ने अफगान सेंट्रल रिजर्व में से लगभग साढ़े 3 बिलियन डॉलर पर से पाबंदी हटा दी, मतलब अफगानी सरकार अब इसका अपनी तरह से इस्तेमाल कर सकती है.
दोनों के बीच रिश्ते आखिर खराब क्यों थे
इसकी शुरुआत लगभग दो सदी पहले हुई थी, जब अमेरिका ने 9/11 हमले झेले. इसके बाद वो पाकिस्तान से लेकर अफगानिस्तान तक उन सारे देशों में पहुंचने लगा, जहां उसे आतंकियों के होने के सुराग मिलते. हमलों को चूंकि अलकायदा ने अंजाम दिया था, लिहाजा यूएस सरकार उससे ओसामा बिन लादेन के सरेंडर की बात करने लगी. इसी मकसद को पाने के लिए यूएस आर्मी भी वहां तैनात हो गई. तालिबान तब अफगानिस्तान में सत्ता में था. उसे हटाकर अमेरिकी सहयोग से एक नई सरकार आई.

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