बसपा से चुनावी आगाज, अपनी पार्टी भी बनाई... कभी पूर्वांचल की पॉलिटिक्स का पावर सेंटर हुआ करता था मुख्तार अंसारी
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मुख्तार अंसारी की मौत के बाद उसके गुनाहों की चर्चा खूब हो रही है. जरायम की दुनिया में उसकी जितनी धमक थी, सियासी रसूख भी उतना ही था. बसपा से चुनावी सफर का आगाज करने वाले मुख्तार ने अपनी पार्टी भी बनाई लेकिन उसका यह सफर थमा भी बसपा से ही था. मुख्तार कभी पूर्वांचल की पॉलिटिक्स का पावर सेंटर हुआ करता था.
पूर्वांचल की पॉलिटिक्स का दमदार मुस्लिम चेहरा रहा मुख्तार अंसारी अब इस दुनिया में नहीं रहा. मुख्तार को गुरुवार की रात बांदा जेल में दिल का दौरा पड़ा. मुख्तार को जेल प्रशासन ने इलाज के लिए तत्काल रानी दुर्गावती मेडिकल कॉलेज पहुंचाया, जहां उपचार के दौरान उसने दम तोड़ दिया. मुख्तार के निधन से कहीं खुशी, कहीं गम है. कोई इसे गुनाहों की दुनिया में एक युग का अंत बता रहा है तो कोई एक मसीहा का चले जाना. मुख्तार की मौत के बाद जरायम की दुनिया में उसकी धमक, सियासी रसूख को लेकर भी बात हो रही है.
मुख्तार के पिता स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे तो चाचा देश के उपराष्ट्रपति, भाई सांसद हैं तो बेटे और भतीजे भी सियासत में सक्रिय हैं. मुख्तार के बड़े भाई अफजाल गाजीपुर से सांसद हैं तो वहीं वाराणसी, मऊ और बलिया लोकसभा सीट पर भी अंसारी परिवार का प्रभाव है. अफजाल ने पिछले चुनाव में मोदी सरकार में मंत्री रहे मनोज सिन्हा को हराया था जो अभी केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर में उपराज्यपाल हैं. खुद मुख्तार भी पांच बार विधायक रहा. जिस बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने कभी यूपी चुनाव में 'चढ़ गुंडों की छाती पर, मुहर लगेगी हाथी पर' नारा दिया था, उसी बसपा से मुख्तार के चुनावी सफर का आगाज हुआ था.
अपराध की दुनिया में कदम रखने के बाद 1990 के दशक तक मुख्तार का कद बढ़ता ही चला गया. अपराध की दुनिया में नाम बनाने के बाद मुख्तार की सियासी महत्वाकांक्षा हिलोरे लेने लगीं. साल 1986 में मुख्तार के बड़े भाई अफजाल अंसारी मोहम्मदाबाद विधानसभा सीट से विधायक निर्वाचित हो चुके थे. मुख्तार भी गाजीपुर की ही किसी सीट से चुनाव लड़ना चाहता था. मुख्तार को 1996 के चुनाव में बसपा ने टिकट दिया लेकिन गाजीपुर की किसी सीट से नहीं, पड़ोसी जिले मऊ की मुस्लिम बाहुल्य मऊ सदर विधानसभा सीट से.
मुख्तार अंसारी ने बसपा के टिकट पर पहला चुनाव जीता और इसके बाद सियासत में एक के बाद एक चुनाव जीतता चला गया. चुनावी राजनीति में कदम रखने के बाद वह कभी चुनाव नहीं हारा. मुख्तार अलग-अलग पार्टियों से विधानसभा पहुंचता रहा. मुख्तार ने दो चुनाव बतौर निर्दलीय जीत अपने रसूख का लोहा मनवाया तो तीन चुनाव वह जेल में रहते जीता. मुख्तार 2002 और 2007 के चुनाव में मऊ सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की. 2007 का चुनाव मुख्तार ने जेल में रहते हुए जीता था
साल 2007 के चुनाव में बसपा को पूर्ण बहुमत के साथ सरकार चलाने का जनादेश मिला. बसपा की सरकार बनी तो मुख्तार और उसका परिवार बसपा के करीब नजर आने लगा. बसपा ने 2009 के लोकसभा चुनाव में मुख्तार को वाराणसी से चुनाव मैदान में उतार दिया. तब बीजेपी से डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी, कांग्रेस से तब के निवर्तमान सांसद डॉक्टर राजेश मिश्रा और सपा के टिकट पर अजय राय चुनाव लड़ रहे थे. मुख्तार ने वाराणसी सीट पर दम दिखाया और बीजेपी के कद्दावर नेता मुरली मनोहर जोशी 17 हजार 211 वोट के अंतर से जीत सके थे. जोशी को 2 लाख 3 हजार 122 और मुख्तार को 1 लाख 85 हजार 911 वोट मिले थे.
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