
बदहाल शिक्षा: 'खंडहर' से कम नहीं बिहार के ये स्कूल, सुनने वाला कोई नहीं!
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सहरसा शहर के बीचों-बीच और जिला समाहरणालय से कुछ मीटर की दूरी पर स्थित से राजकीय कन्या मध्य विद्यालय है. बरसात के मौसम में स्कूल की छत टपकती है और प्लास्टर कई जगहों से टूटकर जमीन पर गिरता रहता है. कई लड़कियां स्कूल में घायल भी हो चुकी हैं और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराने की भी नौबत तक आई है.
बिहार के शिक्षा मंत्री डॉ. चंद्रशेखर अकसर अपने बयानों को लेकर सुर्खियों में बने रहते हैं. डॉ. चंद्रशेखर कोसी क्षेत्र के मधेपुरा से विधायक हैं. आजतक ने कोसी क्षेत्र के ही 2 स्कूल को लेकर पड़ताल की थी, जिनकी हकीकत हैरान और परेशान करने वाली है. मंत्री के इलाकों में स्कूलों की क्या हालत है? वहां पर पढ़ने वाले छात्र और छात्राएं किस माहौल में पढ़ाई करते हैं? पढ़ें ग्राउंड रिपोर्ट-
मौत के साए में पढ़ाई! सहरसा शहर के बीचों-बीच और जिला समाहरणालय से कुछ मीटर की दूरी पर स्थित से राजकीय कन्या मध्य विद्यालय है. यह एक कन्या विद्यालय है जहां पर पहली से लेकर आठवीं तक की लड़कियां पढ़ाई करती हैं. तकरीबन 70 साल पुराने स्कूल की हालत आज ऐसी है कि रोज यहां पर लड़कियां मौत के साए में पढ़ाई करने के लिए मजबूर हैं.
डराती है स्कूल की छत इस विद्यालय का भवन पूरी तरीके से जर्जर स्थिति में पहुंच चुका है. इसकी छत लगातार टूट रही है. बरसात के मौसम में स्कूल की छत टपकती है और प्लास्टर कई जगहों से टूटकर जमीन पर गिरता रहता है. प्लास्टर के छत से टूटकर गिरने के कारण कई लड़कियां स्कूल में घायल भी हो चुकी हैं और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराने की भी नौबत तक आई है. स्कूल की प्रिंसिपल बेबी कुमारी ने कहा, 'हम लोगों ने कई बार जिला प्रशासन को स्कूल के जर्जर भवन को लेकर अवगत कराया है और पत्र भी लिखा है मगर अब तक इसको लेकर कोई कार्रवाई नहीं हुई है. कई लड़कियां प्लास्टर गिरने के कारण घायल भी हो गई है और उन्हें अस्पताल में भी भर्ती कराने की नौबत आई है.”
छात्राओं ने स्कूल आना बंद कर दिया इस स्कूल में पढ़ने वाली शिक्षिकाएं और लड़कियां भी बताती है कि स्कूल के छत का प्लास्टर टूटने के कारण लड़कियां घायल हुई है जिसकी वजह से अब बहुत सारी लड़कियों ने स्कूल में नामांकन तो कराया हुआ है. मगर स्कूल आने से डरती हैं और स्कूल नहीं आती है. स्कूल की एक छात्रा ने कहा, 'हम लोग के स्कूल में आने में डर लगता है. बरसात में छत से पानी टपकता है और छत टूट टूट कर भी गिरता है. बहुत सारी लड़कियों ने इसी डर से स्कूल आना भी बंद कर दिया है”
स्कूल की चारदीवारी नहीं, असामाजिक तत्वों का घेरा 1994 में इस स्कूल की स्थापना हुई थी मगर 30 साल के बाद भी हालात यह है कि लड़कियों के स्कूल से चारों तरफ चारदीवारी नहीं है. नियमों के मुताबिक किसी भी स्कूल के चारों तरफ चारदीवारी होनी चाहिए ताकि स्कूल में छात्र-छात्राएं सुरक्षित माहौल में पढ़ सकें. मगर सहरसा के स्कूल में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसके कारण लड़कियों को रोजाना आसपास के असामाजिक तत्वों के द्वारा छेड़खानी और फब्बतियां झेलनी पड़ती है.
स्कूल के प्रिंसिपल सुभाष झा बताते हैं कि स्कूल में चारदीवारी नहीं होने के कारण रोजाना लड़कियों को असामाजिक तत्वों की छेड़खानी का सामना करना पड़ता है. साथ ही स्कूल के बाहर जलजमाव के कारण भी छात्राओं को बेहद परेशानी होती है. बिहार के स्कूलों में लड़कियों को कराटे की की ट्रेनिंग प्रदान करना पढ़ाई का हिस्सा है मगर स्कूल की लड़कियों का कहना है कराटे सीखना उनके लिए भी बेहद जरूरी है ताकि वह असामाजिक तत्वों का मुकाबला कर सके.

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