नीतीश के 'रामचंद्र' का सियासी वनवास, अब ये 4 विकल्प, आरसीपी सिंह आगे क्या राह चुनेंगे?
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मोदी कैबिनेट में मंत्री रहे आरसीपी सिंह ने बुधवार को इस्तीफा दे दिया है. एक समय आरसीपी सिंह बिहार के सीएम नीतीश कुमार के राइटहैंड माने जाते थे, लेकिन मोदी कैबिनेट में शामिल होने के बाद जेडीयू में उनकी सियासी पकड़ कमजोर हुई तो ललन सिंह और उपेंद्र कुशवाहा मजबूत हुए. ऐसे में आरसीपी के लिए अब बहुत ज्यादा सियासी विकल्प नहीं बच रहे हैं?
JDU कोटे से मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे आरसीपी सिंह ने बुधवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल से अपना इस्तीफा दे दिया, क्योंकि उनके राज्यसभा का कार्यकाल गुरुवार को समाप्त हो रहा है. जेडीयू ने इस बार आरसीपी सिंह के राज्यसभा नहीं भेजा है. ऐसे में अब उनकी नई भूमिका को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं, क्योंकि न ही केंद्र में मंत्री रहे और न ही जेडीयू में कोई खास जगह उनके लिए बची है. ऐसे में आरसीपी सिंह आगे क्या सियासी राह चुनेंगे?
आरसीपी कैसे जेडीयू में नंबर दो की हैसियत
नौकरशाह से सियासत में आए रामचंद्र प्रसाद सिंह (आरसीपी सिंह) ने बिहार के सीएम नीतीश कुमार की उंगली पकड़कर सियासत में आगे बढ़े. आरसीपी और नीतीश कुमार एक ही जिले नालंदा और एक ही जाती कुर्मी समुदाय से आते हैं. ऐसे में दोनों ही नेताओं की दोस्ती गहरी होती गई और आरसीपी देखते ही देखते नीतीश के आंख-नाक-कान बन गए. वो एक समय नीतीश के बाद जेडीयू में नंबर दो की हैसियत रखते थे. जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं, लेकिन फिर भी तीसरी बार उन्हें राज्यसभा का मौका नहीं मिला, जिसके चलते मोदी कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया.
नीतीश कुमार की मनमर्जी पर आरसीपी का सियासी भविष्य संवरता गया. नीतीश ने जेडीयू की कमान छोड़ी तो आरसीपी सिंह ने ही पार्टी की बागडोर थामी, लेकिन जैसे ही मोदी कैबिनेट में शामिल होकर दिल्ली की सियासत में खुद को आरसीपी ने स्थापित करने की कोशिश की, वैसे ही नीतीश कुमार ने सबक सिखाने का ठान लिया. यही वजह थी कि आरसीपी सिंह को तीसरी बार राज्यसभा पहुंचने का मौका नहीं मिल सका.
नीतीश-आरसीपी के रिश्तें में क्यों आई खटास?
बता दें कि नीतीश-आरसीपी की दो दशक की दोस्ती में खटास उस समय आई जब जेडीयू ने केंद्रीय मंत्रिपरिषद में दो सीटों की मांग रखी थी, लेकिन आरसीपी कैबिनेट शामिल होने की जल्दबाजी में एक ही मंत्री पद से मान गए. हालांकि, आरसीपी सिंह यह दावा करते रहे कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सहमति से उन्होंने केंद्र में मंत्री पद की शपथ ली थी, लेकिन इतना साफ है कि उनके केंद्र में मंत्री और ललन सिंह के पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद से जेडीयू में उनकी जगह सिकुड़ती गई.
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