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नीति आयोग ने सरकार पर पीडीएस के निजीकरण, फ्री राशन का दायरा व सब्सिडी कम करने का दबाव बनाया

नीति आयोग ने सरकार पर पीडीएस के निजीकरण, फ्री राशन का दायरा व सब्सिडी कम करने का दबाव बनाया

The Wire
Friday, February 10, 2023 03:18:40 PM UTC

विशेष रिपोर्ट: दस्तावेज़ों से पता चलता है कि नीति आयोग खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों के दायरे के विस्तार का प्रबल विरोधी है. इसने बार-बार ग़रीबों को सब्सिडी वाला राशन देने वाली सार्वजनिक खाद्य वितरण प्रणाली के आकार को घटाने और उसमें बड़े बदलाव लाने की कोशिश की है.

नई दिल्ली: 1 फरवरी को पेश किए गए केंद्रीय बजट में गरीबों के लिए खाद्यान्न सब्सिडी में 63 फीसदी की भारी कटौती की गई. इस खर्च को कम करने के मकसद को हासिल करने के लिए सरकार ने दिसंबर, 2022 में कोविड के समय में शुरू की गई सभी के लिए मुफ्त भोजन की योजना को समाप्त कर दिया और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत दूसरी योजनाओं में फेरबदल करके प्रधानमंत्री का नाम जोड़कर, उसकी रीब्रांडिंग कर दी. ‘राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम को लागू किए जाने के बाद के पिछले 8 वर्षों में भारत की जनसंख्या की प्रति व्यक्ति आय रियल टर्म में 33.4 प्रतिशत बढ़ी है. प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि से निश्चित तौर पर बड़ी संख्या में कई परिवार उच्च आय वर्ग में शामिल हो गए होंगे और वे उतनी कमजोर स्थिति में नहीं होंगे जितने कि 2013-14 में थे.’ खाद्यान्न के सक्षम उपयोग (यूटिलाइजेशन) के साथ-साथ उसके सक्षम तरीके से वितरण को सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत खाद्यान्न का वितरण पीपीपी (सार्वजनिक-निजी भागीदारी) के तहत किया जाना जरूरी है. ‘चिह्नित इलाकों में या राज्य या राष्ट्रीय स्तर पर ऑपरेशनल मकसद के अलावा बफर स्टॉक बनाए रखने के लिए एक तय मात्रा में खाद्यान्न की खरीद और उसके परिवहन एवं भंडारण का काम निजी खिलाड़ियों को सौंपा जाना चाहिए.’

दो महीने पहले सरकार ने खाद्य सुरक्षा कानून के तहत लाभार्थियों के दायरे में विस्तार देने के सर्वोच्च न्यायालय के एक निर्देश का विरोध किया था. याचिकाकर्ता का कहना था कि इस कानून का लाभ लेने वालों की संख्या को 80 करोड़ से थोड़ी अधिक संख्या पर स्थिर कर दिया गया है, जो 2011 की पुरानी पड़ गई जनगणना पर आधारित है. जबकि साधारण अनुमानों के हिसाब से भी बात करें तो कम दस करोड़ लोग जनसंख्या वृद्धि के कारण इस कार्यक्रम के दायरे से बाहर हैं. ‘यह सार्वजनिक निजी भागीदारी का मॉडल बगैर किसी रिसाव (लीकेज) के मूल्य सक्षम खाद्यान्न की खरीद और समय पर वितरण के साथ-साथ खाद्यान्न का उचित भंडारण- ताकि खाद्यान्न की गुणवत्ता खराब न हो- को सुनिश्चित करेगा. वर्तमान में एफसीआई/ दूसरी सरकारी एजेंसियों द्वारा अपनाई गई प्रणाली रिसाव (लीकेज) इंक्लूजन/एक्सक्लूजन की गलतियों और परिवहन/भंडारण की ऊंची कीमत जैसी कई समस्याओं से ग्रस्त है.’

अब द रिपोर्टर्स कलेक्टिव के हाथ लगे कुछ आंतरिक सरकारी दस्तावेज खाद्य सब्सिडी घटाने में शीर्ष पॉलिसी थिंक टैंक नीति आयोग की भूमिका पर रोशनी डालते हैं.

इन दस्तावेजों से यह पता चलता है कि नीति आयोग खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों के दायरे के विस्तार का प्रबल विरोधी है. इसने बार-बार गरीबों को सब्सिडी वाला राशन देने वाली सार्वजनिक खाद्य वितरण प्रणाली के आकार को घटाने और उसमें बड़े बदलाव लाने की कोशिश की है.

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