नए संसद भवन के उद्घाटन पर क्यों छिड़ी सियासी जंग? 6 दलों ने बायकॉट का किया ऐलान
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नए संसद भवन के उद्घाटन को लेकर कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों ने मोर्चा खोल दिया है. उसने इस कार्यक्रम का संयुक्त रूप से बहिष्कार कर दिया है. उन्होंने बिल्डिंग का उद्घाटन पीएम से करवाने पर बीजेपी को घेर लिया है. वह इसे राष्ट्रपति का अपमान बता रहे हैं. वहीं उन्होंने उद्घाटन की तारीख पर भी सवाल खड़े किए हैं. उनका कहना है कि इस दिन सावरकर की जयंती है.
देश के नए संसद भवन का 28 मई को उद्घाटन होगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस भवन का उद्घाटन करेंगे लेकिन अब इस खूबसूरत बिल्डिंग को लेकर देश में सियासत छिड़ गई है. वे पीएम मोदी की आलोचना कर रहे हैं. विपक्षी दलों ने उद्घाटन समारोह के बहिष्कार का ऐलान कर दिया है. आइए सिलसिलेवार तरीके से समझते हैं कि कैसे यह समारोह राजनीति का मुद्दा बन गया.
संसद की नई बिल्डिंग से जुड़ा हालिया विवाद के ट्वीट के बाद शुरू हुआ, जिसमें कहा गया कि इस बिल्डिंग का उद्घाटन पीएम नहीं बल्कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को करना चाहिए. यह ट्वीट कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने 21 मई को किया था.
- कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने ट्वीट में लिखा था- नए संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति जी को ही करना चाहिए, प्रधानमंत्री को नहीं!
- वरिष्ठ सांसद और राज्यसभा में कांग्रेस के पूर्व उप नेता आनंद शर्मा ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के लिए संसद के नए भवन का उद्घाटन करना संवैधानिक रूप से सही नहीं होगा. सवाल यह उठता है कि क्या इसकी जरूरत है. किसी भी बड़े लोकतंत्र ने ऐसा नहीं किया है. दरअसल लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने 18 मई को पीएम को नए भवन का उद्घाटन करने का निमंत्रण दिया था. उन्होंने कहा, 'जब नई संसद की नींव रखी गई तब भी राष्ट्रपति को दूर रखा गया और अब नए संसद भवन के उद्घाटन से भी राष्ट्रपति को दूर रखा जा रहा है. यह न्यायोचित नहीं है. प्रधानमंत्री जी को राष्ट्रपति जी से आग्रह करके उन्हें उद्घाटन में बुलाना चाहिए.'
- कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने ट्वीट किया- पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को नए संसद भवन के शिलान्यास के मौके पर आमंत्रित नहीं किया गया, ना ही अब राष्ट्रपति मुर्मू को उद्घाटन के मौके पर आमंत्रित किया गया है. केवल राष्ट्रपति ही सरकार, विपक्ष और नागरिकों का प्रतिनिधित्व करती हैं. वो भारत की प्रथम नागरिक हैं. नए संसद भवन का उनके (राष्ट्रपति) द्वारा उद्घाटन सरकार के लोकतांत्रिक मूल्य और संवैधानिक मर्यादा को प्रदर्शित करेगा.
नायडू पहली बार 1995 में मुख्यमंत्री बने और उसके बाद दो और कार्यकाल पूरे किए. मुख्यमंत्री के रूप में उनके पहले दो कार्यकाल संयुक्त आंध्र प्रदेश के नेतृत्व में थे, जो 1995 में शुरू हुए और 2004 में समाप्त हुए. तीसरा कार्यकाल राज्य के विभाजन के बाद आया. 2014 में नायडू विभाजित आंध्र प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री के रूप में उभरे और 2019 तक इस पद पर रहे. वे 2019 का चुनाव हार गए और 2024 तक विपक्ष के नेता बने रहे.
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