Primary Country (Mandatory)

Other Country (Optional)

Set News Language for United States

Primary Language (Mandatory)
Other Language[s] (Optional)
No other language available

Set News Language for World

Primary Language (Mandatory)
Other Language(s) (Optional)

Set News Source for United States

Primary Source (Mandatory)
Other Source[s] (Optional)

Set News Source for World

Primary Source (Mandatory)
Other Source(s) (Optional)
  • Countries
    • India
    • United States
    • Qatar
    • Germany
    • China
    • Canada
    • World
  • Categories
    • National
    • International
    • Business
    • Entertainment
    • Sports
    • Special
    • All Categories
  • Available Languages for United States
    • English
  • All Languages
    • English
    • Hindi
    • Arabic
    • German
    • Chinese
    • French
  • Sources
    • India
      • AajTak
      • NDTV India
      • The Hindu
      • India Today
      • Zee News
      • NDTV
      • BBC
      • The Wire
      • News18
      • News 24
      • The Quint
      • ABP News
      • Zee News
      • News 24
    • United States
      • CNN
      • Fox News
      • Al Jazeera
      • CBSN
      • NY Post
      • Voice of America
      • The New York Times
      • HuffPost
      • ABC News
      • Newsy
    • Qatar
      • Al Jazeera
      • Al Arab
      • The Peninsula
      • Gulf Times
      • Al Sharq
      • Qatar Tribune
      • Al Raya
      • Lusail
    • Germany
      • DW
      • ZDF
      • ProSieben
      • RTL
      • n-tv
      • Die Welt
      • Süddeutsche Zeitung
      • Frankfurter Rundschau
    • China
      • China Daily
      • BBC
      • The New York Times
      • Voice of America
      • Beijing Daily
      • The Epoch Times
      • Ta Kung Pao
      • Xinmin Evening News
    • Canada
      • CBC
      • Radio-Canada
      • CTV
      • TVA Nouvelles
      • Le Journal de Montréal
      • Global News
      • BNN Bloomberg
      • Métro
देश में मनुस्मृति के प्रति मोह छूटता क्यों नहीं दिख रहा है?

देश में मनुस्मृति के प्रति मोह छूटता क्यों नहीं दिख रहा है?

The Wire
Saturday, March 11, 2023 05:59:11 AM UTC

बीएचयू के धर्मशास्त्र मीमांसा विभाग ने ‘भारतीय समाज में मनुस्मृति की प्रयोज्यता’ पर शोध का प्रस्ताव दिया है. 21वीं सदी की तीसरी दहाई में जब दुनियाभर में शोषित उत्पीड़ितों में एक नई रैडिकल चेतना का संचार हुआ है, 'ब्लैक लाइव्ज़ मैटर' जैसे आंदोलनों ने विकसित मुल्कों के सामाजिक ताने-बाने में नई सरगर्मी पैदा की है, तब अतीत के स्याह दौर की याद दिलाती इस किताब की प्रयोज्यता की बात करना दुनिया में भारत की क्या छवि बनाएगा?

समय की निहाई अक्सर बेहद निर्मम मालूम पड़ती है. ‘…इस सम्मेलन का यह स्पष्ट मत है कि मनुस्मृति, अगर हम उन श्लोकों पर गौर करें जिसमें शूद्र जातियों को अपमानित किया गया है, उसने उनकी प्रगति को बाधित किया है, उनकी सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक गुलामी को स्थायी बनाया है…. वह किसी भी रूप में धार्मिक या पवित्र किताब कहलाने लायक नहीं है. और इसी बात को जुबां देने के लिए यह सम्मेलन ऐसी धार्मिक किताब का अंतिम संस्कार कर रहा है जिसने लोगों को विभाजित किया है और जिसने मानवता को नष्ट किया है.’ (पेज 251, Mahad The Making of the First Dalit Revolt, Anand Teltumbde, Navayana, 2017) ‘Protecting and justifying an existent unequal social structure and providing a religious brief for maintaining economic as well as other interests of the upper classes is the main object of this law book. This book bestows rights on Brahmins and Kshatriyas as against the lower classes, and it advocates enslavement of all women.’  ( Page 6, -do-) – वह मनुस्मृति को उन तमाम ‘दोषारोपणों से मुक्त’ कर देती है जिसके चलते वह रैडिकल दलितों से लेकर तर्कशीलों के निशाने पर हमेशा रहती आई है

कब विश्व की क्लासिकीय रचनाएं- जिनके बिखेरे ज्ञान के मोतियों पर अक्सर बात होती रहती है, कभी-कभी जबरदस्त विवाद का भी सबब बन सकती हैं, यह नहीं कहा जा सकता या कब कल के अग्रणी विचारक, क्रांतिकारी- जिन्होंने युग को प्रभावित किया- वह कुछ मामलों में कब अपने समय की सीमाओं में ही कैद नज़र आ जाएंगे, इसकी भी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती. – दूसरे, इससे संघ परिवारी जमातों की एक दूसरी चालाकी भरे कदम के लिए जमीन तैयार होती है जिसके तहत वह दलितों के ‘असली दुश्मनों को चिह्नित करते हैं’ और इस कवायद में ‘मुसलमानों’ को निशाने पर लेते हैं. वह यही कहते फिरते हैं कि मुसलमान शासकों के आने के पहले जाति प्रथा का अस्तित्व नहीं था और उनका जिन्होंने जमकर विरोध किया, उनका इन शासकों द्वारा जबरदस्ती धर्मांतरण किया गया और जो लोग धर्मांतरण के लिए तैयार नहीं थे, उन्हें उन्होंने गंदे कामों में धकेल दिया.

वरना ऐसे कहां संभव था कि दुनिया के महानतम नाटककारों में शुमार शेक्सपीयर, जो आज भी विश्व भर में सराहे जाते हैं और लोग उनके कलम से ताकत हासिल करते हैं, वह भी अपने कथित ‘यहूदी विरोध के लिए’ (सामीवाद विरोध) आलोचना का शिकार बन जाते. जब उनके बहुुचर्चित नाटक मर्चेंट आफ वेनिस के ‘खलनायक’ शायलाॅक के चित्रण को लेकर आक्षेप खड़े किए जाते या फ्रांसिसी क्रांति (1789) के सबसे प्रभावशाली राजनीतिक समूह के तौर पर जाने वाले जैकोबिन, स्त्रियों के प्रति उनके संकीर्ण नज़रिये के रेखांकित किए जाते  या गौतम बुद्ध, जिन्होंने अपने राजपाट को त्याग दिया और जो सत्य की तलाश में निकल पड़े, उन्हें भी महिलाओं को लेकर उनके उद्गारों या रुख के लिए आज भी आलोचना झेलनी पड़ती.

पिछले दिनों ऐसा ही प्रसंग हिंदुस्तान में तारी हुआ जब तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस- जिसमें स्त्रियों और उत्पीड़ित जातियों के कथित तौर पर अपमानजनक चित्रण को लेकर बहस चल पड़ी; एक खेमा जहां इस बात को सिरे से खारिज कर रहा था, वहीं दूसरा खेमा उन सबूतों को एक के बाद पेश कर रहा था कि उसकी बात किस तरह सही है .

Read full story on The Wire
Share this story on:-
More Related News
© 2008 - 2025 Webjosh  |  News Archive  |  Privacy Policy  |  Contact Us