
देवताओं की मां अदिति की तपस्थली, जहां प्रकट हुईं छठ की देवी... बिहार के देवार्क मंदिर में जीवित है सूर्य पूजा की प्राचीन परंपरा
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बिहार के औरंगाबाद जिले में स्थित देवार्क सूर्य मंदिर छठ पर्व के दौरान सूर्य देव की पूजा का प्रमुख केंद्र है. यह मंदिर वैदिक काल से जुड़ा हुआ है और इसे सूर्य देव के वैदिक नाम 'अर्क' को समर्पित माना जाता है. मंदिर की वास्तुकला अनूठी है और यह पश्चिमाभिमुख है, जो अन्य सूर्य मंदिरों से अलग है.
प्रकृति, परिवेश और सूर्य देव की आराधना का महापर्व छठ असल में कई लोकमान्यताओं की पूजा का दिन है. बिहार की संस्कृति युगों और सदियों से सूर्य पूजा की रही है और इसे साबित करते हैं बिहार में मौजूद कई प्राचीन सूर्य मंदिर. इन्हीं मंदिरों में से एक है बिहार के औरंगाबाद में स्थित देवार्क सूर्य मंदिर, जो सूर्य देव के एक और वैदिक नाम अर्क को समर्पित है. ये सूर्य मंदिर बिहार के औरंगाबाद जिले के देवार्क में स्थित है. देवार्क यानी कि अर्क देव. अर्क का अर्थ हुआ सूर्य. इस तरह यह मंदिर सूर्य देव को समर्पित है.
वेदों में अर्क भी है सूर्य का नाम वेदों में भी सूर्य को अर्क नाम से पुकारा गया है. सूर्य नमस्कार के तेरह मंत्रों में से एक मंत्र है, ओम अर्काय नम:, यानि मैं अर्क देव को नमस्कार करता हूं. अर्क का एक अर्थ रस भी होता है. सही अर्थों में जीवात्मा में पाया जाने वाला ऊर्जा का स्त्रोत सूर्य यानी ऊर्जा का रस ही है. इसलिए वैदिक ऋचाओं में सूर्य का प्रमुख स्थान है.
बिहार के औरंगाबाद में मौजूद देवार्क सूर्य मंदिर सूर्य पूजा का प्राचीन प्रमाण है. देवार्क मंदिर को तीन सूर्य मंदिरों का एक हिस्सा माना जाता है. इसके दो अन्य हिस्से काशी स्थित लोलार्क और एक तीसरा हिस्सा कोणार्क का सूर्य मंदिर है. एक पुराण कथा के मुताबिक, शिव के दो गण राक्षस माली-सुमाली कठिन शिव तपस्या कर रहे थे. ये माली-सुमाली रावण के नाना ही थे. इस दौरान इंद्र को भय हुआ तब उनकी आज्ञा से सूर्य देव ने अपना ताप बढ़ाया और उन्हें जलाने की युक्ति करने लगे. इस पर महादेव शिव नाराज हो गए और उन्होंने सूर्य देव को त्रिशूल से भेद दिया. सूर्य के तीन टुकड़े पृथ्वी पर गिरे. एक टुकड़ा देवार्क (बिहार) दूसरा टुकड़ा लोलार्क (काशी, उत्तर प्रदेश), कोणार्क में तीसरा टुकड़ा गिरा.
देव माता अदिति ने की थी पूजा मंदिर को लेकर एक कथा के अनुसार प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गये थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य में छठी मैया की आराधना की थी. तब प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था. इसके बाद अदिति के पुत्र हुए त्रिदेव रूप आदित्य भगवान, जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलायी.
अलग है देवार्क सूर्य मंदिर का वास्तु शिल्प देव सूर्य मंदिर, देवार्क सूर्य मंदिर या केवल देवार्क के नाम से प्रसिद्ध यह मंदिर अन्य सूर्य मंदिरों की तरह पूर्वाभिमुख न होकर पश्चिमाभिमुख है. यह अपनी अनूठी शिल्पकला के लिए भी जाना जाता है. पत्थरों को तराश कर बनाए गए इस मंदिर की नक्काशी उत्कृष्ट शिल्प कला का नमूना है. इतिहासकार इस मंदिर के निर्माण का काल छठी - आठवीं सदी के मध्य होने का अनुमान लगाते हैं जबकि अलग-अलग पौराणिक विवरणों पर आधारित मान्यताएं और जनश्रुतियां इसे त्रेता या द्वापर युग के मध्यकाल में इसका निर्माण बताती हैं.
पौराणिक वर्णन है कि जब देव माता अदिति ने सर्वश्रेष्ठ पुत्र होने के लिए तपस्या की थी, तब तप के प्रभाव से प्रकृति का छठा अंश ही देवी के रूप में प्रकट हुआ. ज्योतिष में भी पंचम भाव संतान सुख दिलाता है और षष्ठम भाव शत्रु पर विजय और संरक्षण दिलाता है. इसीलिए यह दोनों तिथियां संतान सुख और संतान पालन से जुड़ी हुई मानी जाती हैं.

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