![टिकटों से कमाई, सरकारी लापरवाही और भारी भीड़... ऐसे हादसे का शिकार हुआ 'मौत का पुल'](https://akm-img-a-in.tosshub.com/aajtak/images/story/202211/morabi-pul-sixteen_nine.jpg)
टिकटों से कमाई, सरकारी लापरवाही और भारी भीड़... ऐसे हादसे का शिकार हुआ 'मौत का पुल'
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पुल की उम्र पूरी हो चुकी थी, लेकिन लालच की तो कोई उम्र नहीं होती. रविवार को गुजरात के मोरबी में पुल पर लालच का इतना बोझ डाल दिया गया कि वो बर्दाश्त नहीं कर सका और देखते ही देखते नदी में समां गया. इस पुल पर खड़े करीब 135 लोगों की जान चली गई. ये हादसा कैसे हुआ? क्यों हुआ? किसकी वजह से हुआ?
वो अंग्रेजों के जमाने का पुल था. झूलते हुए पुल पर चलना लोगों को झूले का अहसास कराता था. इस अहसास की कीमत थी 17 रुपये. हालांकि, पुल की उम्र पूरी हो चुकी थी लेकिन लालच की तो कोई उम्र नहीं होती. रविवार को भी उस पुल पर लालच का इतना बोझ डाल दिया गया कि वो बर्दाश्त नहीं कर सका और देखते ही देखते पुल नदी में समा गया. जिस पर खड़े करीब 135 लोगों की जान चली गई. ये हादसा कैसे हुआ? क्यों हुआ? किसकी वजह से हुआ? आइए आपको तफ्सील से बताते हैं.
कौन है असली जिम्मेदार?
गुजरात के मोरबी शहर में मच्छु नदी पर बने झूलते पुल की खौफनाक तस्वीरों को देखकर हर किसी का दिल दहल गया. पुल के गिरने का वो 35 सेकंड का वीडियो जितनी बार आंखों के सामने से गुजरता है, उतनी बार सिहरन पैदा करता है. लेकिन सवाल ये है कि लगभग 143 साल पुराने, सवा मीटर चौड़े और 233 मीटर लंबे उस पुल के टूटने का असली जिम्मेदार कौन है?
हादसे पर उठते संगीन सवाल
आखिर इस छोटे से कमजोर पुल पर एक ही वक्त में करीब 400 लोगों को जाने की इजाजत किसने दी? वो भी बाकायदा टिकट लेकर? लोगों को अंधाधुंध तरीके से टिकट बेचने से पहले प्रशासन ने इस ओर ध्यान क्यों नहीं दिया? क्या इस पुल को लोगों के लिए खोले जाने से पहले इसे फिटनेस सर्टिफिकेट दिया गया था या नहीं? अब हम मोरबी के झूलते पुल के हादसे से उपजे सवालों की पड़ताल करेंगे, ताकि आपको भी ये पता चल सके कि आखिर मोरबी में 135 लोगों की अकाल मौत का असली मुजरिम कौन है? और कैसे दोबारा ऐसे हादसे को होने से पहले ही रोका जा सकता है.
20 फरवरी 1879 को हुआ था उद्घाटन
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चुनाव आयोग के मुताबिक, इस लोकसभा चुनाव के दौरान ईवीएम और वीवीपैट के मेमोरी वेरिफिकेशन के लिए प्रति मशीन 40 हजार रुपए और उस पर 18 फीसदी जीएसटी एडवांस जमा करना पड़ता है. आयोग के तकनीकी विशेषज्ञों को टीम सभी के सामने डाटा वेरिफाई करती है. अगर शिकायत सही मिली यानी ईवीएम डेटा और पर्चियों के बीच अनियमितता यानी गड़बड़ पाई गई तो कार्रवाई होगी.