जैसलमेर के जंगलों को बचाने में जुटे लोग, ओरण के पेड़ काटने पर प्रशासन को दिया अल्टीमेटम
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पर्यावरण प्रेमियों ने जिला कलेक्टर कार्यालय जाकर बची हुई ओरणों को राजस्व रिकॉर्ड में शामिल करने के लिये ज्ञापन दिया. ओरणों व जंगलों को ओद्योगिकीकरण से बचाने के लिए व लगातार कट रहे पेड़ों को कटाई से रोकने के लिये 225 किमी की ओरण बचाओ यात्रा 11 दिसंबर को देगराय मंदिर से शुरू हुई और जैसलमेर पहुंची.
जैसलमेर में तेजी से हो रहे ओद्योगिकीकरण के चलते समाप्त हो रहे जंगल व ओरण गोचर की भूमि पर सोलर कंपनियों द्वारा काटे जा रहे खेजड़ी के पेड़ों को बचाने के लिए 11 दिसंबर को शुरू हुई ओरण बचाओ यात्रा सोमवार 19 दिसम्बर को जैसलमेर में समाप्त हुई. इस दौरान हनुमान चौराहे पर एक सभा का आयोजन किया गया. जिसमें मुख्य वक्ता के रूप में जयपुर से आए देश के विख्यात पर्यावरण प्रेमी डॉ. गुलाब सिंह ने जंगल व ओरण को बचाने के लिये आमजन को जागरूक किया.
इसके बाद दर्जनों की संख्या में पर्यावरण प्रेमियों ने जिला कलेक्टर कार्यालय जाकर बची हुई ओरणों को राजस्व रिकॉर्ड में शामिल करने के लिये ज्ञापन दिया. असल में ओरणों व जंगलों को ओद्योगिकीकरण से बचाने के लिए व लगातार कट रहे पेड़ों को कटाई से रोकने के लिये 225 किमी की ओरण बचाओ यात्रा 11 दिसंबर को देगराय मंदिर से शुरू हुई और जैसलमेर पहुंची.
इस दौरान गुलाब सिंह ने बताया कि जिले के तालाब और ओरण आदि इलाकों को बचाने के लिए हम लंबे समय से प्रयासरत हैं. हम चाहते हैं कि पर्यावरण को बचाने के लिए इन जंगलों को भी बचाया जाना चाहिए. उन्होंने प्रशासन को चेतावनी देते हुए कहा कि ओरणों को बचाने के लिये पिछले कई सालों से लगातार आंदोलन किये जा रहे हैं, लेकिन सरकार व जिला प्रशासन इस ओर कतई ध्यान नहीं दे रहा है. लगातार पेड़ कट रहे हैं व ओरणों की जमीन पर विद्युत ईकाईयां लग रही हैं. अगर 15 दिन में मांगे पूरी नहीं कि जाती तो जयपुर और दिल्ली तक सरकार के दरवाजे खटखटाएंगे.
पर्यावरण प्रेमी व ओरण टीम के सदस्य सुमेर सिंह ने बताया कि हमे अतिरिक्त जिला कलेक्टर द्वारा मांगों को पूरा करने के लिए 15 दिन का आश्वासन दिया गया है. लेकिन यह आश्वासन देने का सिलसिला 5 वर्षों से चल रहा है. हमनें जो ज्ञापन सौंपा हैं उसमें बताया है कि प्राचीन सांस्कृतिक व धार्मिक आस्था होने के बावजूद भी ओरणों में लगातार वृक्ष काटे जा रहे हैं, जबकि ओरणों में वृक्ष काटने व काश्त करने के लिये सदियों से सामाजिक रोक लगी हुई है. उसके बावजूद राजस्थान के राज्य पक्ष खेजड़ी, राज्य पुष्प रोहीड़ा, बोरडी, कुम्भट, देशी बबूल, केर आदि मरूस्थलीय वृक्षों को काटा जा रहा है.
(इनपुट- विमल भाटिया)

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