जानिए कौन हैं बैजा बाई? जिनका नाम लेकर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने किया है बड़ा दावा; छेड़ा ज्ञानवापी का मुद्दा
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Who is Baija Bai: केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने दावा किया है कि उनके घराने की बैजाबाई ने ज्ञानवापी के कुएं में मौजूद शिवलिंग का संरक्षण किया था. सिंधिया के इस बयान के बाद लोगों में यह उत्सुकता बढ़ गई है कि आखिर सिंधिया घराने की यह बैजाबाई कौन थीं?
Gwalior news: केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के एक दावे ने सिंधिया घराने की महारानी बैजाबाई को सुर्खियों में ला दिया है. सिंधिया ने दावा किया है कि उनके घराने की बैजाबाई ने ज्ञानवापी के कुएं में मौजूद शिवलिंग का संरक्षण किया था. सिंधिया के इस बयान के बाद लोगों में यह उत्सुकता बढ़ गई है कि आखिर सिंधिया घराने की यह बैजाबाई कौन थीं? हम आपको बताते हैं कि बैजाबाई ने किस तरह सिंधिया रियासत की महारानी बनकर सिंधिया रियासत चलाई थी...
दरअसल, बैजाबाई जिन्हें बाइजा बाई (Baiza Bai) भी कहा जाता है, इनका जन्म साल 1784 में महाराष्ट्र के कोल्हापुर के कागल में हुआ था. उनके पिता सखाराम घाटगे कागल के देशमुख हुआ करते थे. बैजाबाई की मां का नाम सुंदराबाई था. साल 1798 में जब बैजाबाई महज 14 साल की थी तब उनका विवाह ग्वालियर के सिंधिया घराने में दौलत राव सिंधिया के साथ कर दिया गया. बैजाबाई तलवार चलाना सीख चुकी थीं और घुड़सवारी में भी वे माहिर हो चुकी थीं.
बैजाबाई ने 43 साल की उम्र में सिंधिया रियासत की बागडोर संभाल ली थी. सिंधिया घराने के महाराज दौलत राव सिंधिया की तीसरी पत्नी बनकर बैजाबाई सिंधिया घराने में पहुंची थीं. जब मराठा सेना का अंग्रेजों के साथ युद्ध हुआ तो बैजाबाई ने अपने पति के साथ इस युद्ध में शामिल होकर अंग्रेजों का सामना किया.
दौलत राव सिंधिया भी राज्य के कामकाजों में बैजाबाई की मदद लेने लगे थे. जब महाराज दौलत राव का निधन हो गया तो सिंधिया रियासत की बागडोर बैजाबाई ने थाम ली. 1827 से लेकर 1833 तक भेज भाई ने सिंधिया रियासत पर शासन किया. जिस वक्त बैजाबाई ने सिंधिया रियासत का शासन चलाया, उस वक्त देश में अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कंपनी भी मौजूद थी.
ईस्ट इंडिया कंपनी बैजाबाई के विरोध में थी यही वजह रही कि ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपनी ताकत लगाते हुए बैजाबाई को सत्ता से हटा दिया और उनके दत्तक पुत्र जानकोजी राव सिंधिया द्वितीय को शासन की बागडोर दे दी.
बैजाबाई ने अपने जीवन के 9 साल उज्जैन में बताए थे. वे साल 1847 से 1856 तक उज्जैन में रहीं और फिर ग्वालियर लौट आई थीं. साल 1857 में जब आजादी के लिए रानी लक्ष्मीबाई ने विद्रोह किया था तो वक्त बैजाबाई भी ग्वालियर में मौजूद थीं.
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