
जमीन से लेकर झीलों और हवा में भी घुल जाता जहर, अगर कजाकिस्तान ने मान ली होती US की ये बात, भारी पैसों के बदले हुई थी डील
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करीब 2 दशक पहले कजाकिस्तान दुनिया का पहला ऐसा देश बना, जिसने न्यूक्लियर वेस्ट के आयात पर हामी भर दी. आसान ढंग से कहें तो जिस जहरीले कचरे से दुनिया के बाकी देश खौफ खाते हैं, वो उसे अपनी जमीन पर रखेगा. इसके बदले उसे भारी पैसे मिलने वाले थे, जो कि तभी-तभी आजाद हुए गरीब मुल्क के लिए निहायत जरूरी था. लेकिन फिर कुछ बदला, और कजाकिस्तान एकदम से बिदक गया.
भोपाल गैस कांड में निकले यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे पर इन दिनों भारी हल्ला है. हाल में इस रासायनिक वेस्ट को भोपाल से हटाकर पीथमपुर भेज दिया गया ताकि वहीं इसे जलाकर खत्म किया जा सके. इसके बाद लोग भड़क उठे. प्रोटेस्ट होने लगे कि कचरा किसी भी हाल में उनके यहां न जलाया जाए. एक्सपर्ट सारे लॉजिक देकर हार गए कि इसमें अब कोई जहर नहीं, लेकिन जनता है कि मानने को राजी नहीं.
ये हाल एक राज्य का है, जहां एक हिस्से से दूसरे हिस्से में केमिकल वेस्ट को स्वीकारा नहीं जा रहा. वहीं दुनिया का एक मुल्क ऐसा भी है, जो सारे देशों का बेहद जहरीला न्यूक्लियर वेस्ट अपने यहां जमा करने के लिए राजी था.
साल 2002 की बात है, जब कजाकिस्तान ने इसपर मंजूरी दे दी कि दुनियाभर के देश अपने-अपने यहां जमा परमाणु कचरा उसके यहां जमा कर सकें. सेंट्रल एशिया का ये देश नब्बे के दशक में रूस से अलग हुआ था और उसे पैसों की भारी जरूरत थी. पश्चिमी देशों और कजाक सरकार की यह डील कुछ ऐसी ही थी कि गरीब युवक जरूरत के चलते अमीर परिवार को अपनी किडनी बेच दे.
लेकिन क्या महज पैसों के लिए उसने हामी भरी थी, या बात कुछ और थी?
ये समझने के लिए एक बार तीन दशक पहले के कजाकिस्तान को जानते चलें. नब्बे की शुरुआत में सोवियत संघ का ये हिस्सा टूटकर आजाद देश तो बन गया लेकिन उसके पास आजादी को सेलिब्रेट करने के लिए कुछ नहीं था. उसकी पूरी इकनॉमी रूस के आसपास घूमती थी. अब रूस नहीं था. आजादी के अगले पांचेक साल के भीतर ही देश की अर्थव्यवस्था 40 फीसदी तक गिर गई.
रूबल करेंसी की बजाए उसने अपनी मुद्रा तेंगे जारी की. कई कोशिशें हुईं लेकिन गिरावट का ग्राफ वैसा ही रहा. कजाकिस्तान में तेल, यूरेनियम और कई मिनरल्स थे लेकिन उनके खनन के लिए पैसे और एक्सपर्ट दोनों ही गायब थे.

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