चुनाव में मुइज्जू की जीत से खुश हुआ चीन का ग्लोबल टाइम्स, भारत को दी नसीहत
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मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू के चीन समर्थक रवैये को मालदीव की जनता का भारी समर्थन मिल गया है. संसदीय चुनावों में मुइज्जू की पार्टी को भारी जीत मिली है जिससे चीन भी काफी खुश है. चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने इस चुनाव पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है जिसमें भारत का जिक्र किया है.
मालदीव में चीन समर्थक राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू की नीतियों को अब वहां के लोगों का भारी समर्थन मिल गया है जिसका सबूत रविवार को हुए संसदीय चुनाव ने दे दिया है. मालदीव की संसद मजलिस के चुनाव में मुइज्जू की जीत पर चीन ने बधाई दी और कहा कि मालदीव के लोगों ने जो फैसला लिया है, चीन उसका सम्मान करता है. अब चीन की सत्ताधारी कम्यूनिस्ट पार्टी का मुखपत्र माने जाने वाले ग्लोबल टाइम्स ने कहा है कि संसदीय चुनाव में मुइज्जू के पार्टी की प्रचंड जीत से चीन-मालदीव के रिश्तों में और स्थिरता आएगी.
मजलिस की 93 सीटों में से 90 सीटों के लिए चुनाव हुए थे जिसमें से 66 सीटों पर मुइज्जू की पीपुल्स नेशनल कांग्रेस (PNC) को जीत मिली है. मुइज्जू भले ही पिछले साल राष्ट्रपति बन गए थे लेकिन वो अपनी नीतियों को आगे नहीं बढ़ा पा रहे थे.
संसद में भारत समर्थक माने जाने वाले मोहम्मद सोलिह की पार्टी मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी (MDP) के पास बहुमत था और ये पार्टी मुइज्जू सरकार के लाए विधेयकों को पास होने से रोक दे रही थी. लेकिन इस चुनाव में एमडीपी को महज 12 सीटों पर जीत मिली है. पीएनसी और सहयोगी दलों को मिलाकर कुल 74 सीटों पर जीत के साथ मुइज्जू सरकार प्रचंड बहुमत में है जिसे लेकर चीन बेहद खुश है.
'चुनाव के नतीजे बताते हैं कि...'
मुइज्जू की जीत पर चीन की तरफ से बयान सामने आने के बाद ग्लोबल टाइम्स ने अपने एक लेख में भारत का जिक्र कर लिखा है कि चुनाव के नतीजे बताते हैं कि मालदीव को भूराजनीतिक संघर्षों में फंसने के बजाए आर्थिक विकास पर ध्यान देने की अधिक जरूरत है.
अखबार ने लिखा, 'मालदीव के चुनाव ने पश्चिमी और भारतीय मीडिया में खूब सुर्खियां बटोरीं. रॉयटर्स ने लिखा कि पिछले साल चुने गए मुइज्जू ने देश से इंडिया फर्स्ट की नीति को खत्म करने की कसम खाई थी जिससे भारत के साथ मालदीव के रिश्ते तनावपूर्ण हो गए थे. भारतीय मीडिया ने लिखा कि संसदीय चुनाव को चीन के साथ गहरे आर्थिक और रक्षा सहयोग को आगे बढ़ाने और पारंपरिक सहयोगी भारत से अलग होने की मुइज्जू की नीति के लिए एक महत्वपूर्ण परीक्षा के रूप में देखा गया.'
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