
चाबहार पोर्ट पर ट्रंप प्रशासन का फैसला भारत के लिए कितना बड़ा झटका है? क्या-क्या नुकसान होंगे
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ईरान का चाबहार पोर्ट रणनीतिक और व्यापारिक तौर पर भारत के लिए काफी अहम है. इसी वजह से पिछले साल भारत ने 10 साल के लिए इसके प्रबंधन को लेकर ईरान के साथ समझौता किया है. साथ ही पोर्ट के विकास में अरबों डॉलर का निवेश कर रखा है. लेकिन अमेरिकी प्रतिबंधों से न सिर्फ ईरान बल्कि भारत के सामने चुनौतियों का अंबार खड़ा हो गया है.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पहले भारत पर 25 फीसदी टैरिफ लगाया, फिर 25 फीसदी दंडात्मक टैरिफ और लगाया, इससे भारत पर कुल 50 फीसदी अमेरिकी टैरिफ लागू हो चुका है. अब भारत को एक और झटका देते हुए ईरान के चाबहार पोर्ट पर 2018 से प्रतिबंधों पर मिली हुई छूट को भी खत्म कर दिया गया है. अमेरिका इसे 'अधिकतम दबाव' की रणनीति के तहत उठाया गया कदम बता रहा है. लेकिन इससे ईरान के साथ-साथ भारत और पोर्ट के जरिए व्यापार करने वाले अन्य देशों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा.
29 सितंबर से लागू होंगे प्रतिबंध
अमेरिका ने 2018 में चाबहार पोर्ट को प्रतिबंधों से छूट दी थी, जिसे अब रद्द करने का फैसला लिया गया है. इस फैसले से भारत के लिए रणनीतिक और आर्थिक चुनौतियां खड़ी हो गई हैं. यह फैसला 29 सितंबर 2025 से प्रभावी होगा. चाबहार को भारत के लिए अफगानिस्तान और मध्य एशिया का एंट्री गेट माना जाता है, जिसके जरिए वह पाकिस्तान को बाईपास करते हुए अपना कारोबार करता है. लेकिन अब ऐसा कर पाना मुश्किल होगा. इससे भारत की क्षेत्रीय कनेक्टिविटी, व्यापार और जियो-पॉलिटिकल स्ट्रैटजी पर गहरा असर पड़ सकता है.
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भारत ने पिछले साल ही ईरान के साथ चाबहार पोर्ट के मैनेजमेंट के लिए 10 साल का समझौता किया था. यह पहली बार है जब भारत विदेश में किसी बंदरगाह का प्रबंधन कर रहा है. लेकिन हालिया फैसले से इस समझौते को झटका लग सकता है. चाबहार बंदरगाह भारत के लिए एक रणनीतिक संपत्ति भी है, क्योंकि इसे चीन-पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह का जवाब माना जा रहा है, जो ईरान की सीमा के करीब से गुजरता है. अमेरिकी प्रतिबंधों की वजह से इस बंदरगाह के संचालन और विकास में बाधा आ सकती है, जिससे भारत की क्षेत्रीय कनेक्टिविटी कमजोर पड़ सकती है.
ग्वादर का जवाब है चाबहार पोर्ट

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