
खस्ताहाल आर्थिक हालात, आतंकी देश का टैग, डिप्लोमैटिक फजीहत... ऐसे ही नहीं भारत से संबंध सुधारने को मजबूर हुआ PAK?
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पाकिस्तान की अकड़ निकल गई है. खस्ताहाल हालात ने पाकिस्तान में कंगाली बढ़ा दी है. नेता से लेकर अफसर तक भारत को याद कर रहे हैं और अच्छे रिश्ते की वकालत करने में जुट गए हैं. पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने एक बार फिर भारत से अच्छे रिश्ते पर बात की है.
खस्ताहाल आर्थिक हालात, आतंकी देश का टैग, दुनियाभर में डिप्लोमैटिक फजीहत के बीच पाकिस्तान अब सुधरना चाहता है. भारत से भी बेहतर रिश्ते की उम्मीदें बढ़ाने लगा है. यही वजह है कि पुरानी गलतियों पर पर्दा डालने की बजाय खुलकर स्वीकार करने में गुरेज नहीं कर रहा है. मंगलवार को पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने सत्तारूढ़ पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) की कमान संभालते ही भारत से पुराने रिश्तों को याद किया. नवाज शरीफ ने माना कि 1999 में हुए लाहौर समझौते को तोड़ना हमारी (पाकिस्तान) गलती थी.
नवाज ने कहा, पाकिस्तान ने 28 मई 1998 को पांच एटमी परीक्षण किए. उसके बाद वाजपेयी साहब (भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी) लाहौर आए थे और हमसे यहां वादा किया था. ये अलग बात है कि हमने वादे के खिलाफ काम किया और उसमें हम कसूरवार हैं. नवाज ने करगिल युद्ध का जिक्र किया और सीधे तौर पर जनरल परवेज मुशर्रफ को निशाने पर लिया. नवाज ने अपने भाषण में यह भी कहा कि अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बिल ने उन्हें न्यूक्लियर टेस्ट ना करने के एवज में पांच अरब डॉलर देने का ऑफर दिया था. क्लिंटन ने मेरा जमीर खरीदने की कोशिश की थी. लेकिन मैंने इनकार कर दिया. अगर इमरान खान (पूर्व प्रधानमंत्री) जैसे व्यक्ति मेरी जगह होते तो वे क्लिंटन की पेशकश स्वीकार कर लेते.
6 साल बाद पार्टी के अध्यक्ष बने हैं नवाज शरीफ
मंगलवार को शरीफ अपनी पार्टी PMLN की जनरल काउंसिल की बैठक को संबोधित कर रहे थे. शरीफ को फिर से पार्टी का निर्विरोध अध्यक्ष चुना गया है. वे 6 साल बाद अपनी पार्टी के अध्यक्ष बने हैं. पनामा पेपर कांड के बाद नवाज को पद से हटाया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने नवाज को अयोग्य ठहरा दिया था. नवाज के भाई शहबाज शरीफ इस समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री हैं.
1999 में लाहौर समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे
शरीफ और वाजपेयी ने पाकिस्तान में शिखर सम्मेलन के दरम्यान 21 फरवरी 1999 को लाहौर समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. इस समझौते में शांति बनाए रखने के लिए परमाणु हथियारों से दूरी जैसे मुद्दे शामिल थे. हालांकि, समझौते के कुछ महीने बाद ही करगिल युद्ध (जम्मू-कश्मीर का कारगिल जिला) हो गया था. यह संघर्ष दो महीने तक चला था और दोनों तरफ से हजारों लोगों की जान गई थी.

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