
क्या 2 पार्टियों से आगे बढ़ेगा अमेरिका? मस्क की तीसरी पार्टी का सपना और क्या है कानूनी हकीकत?
AajTak
अमेरिकी पॉलिटिकल सिस्टम में डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन इन दो प्रमुख पार्टियों के अलावा तीसरे मोर्चे या तीसरी पार्टी की कोई खास जगह नहीं है. इसकी वजह है कि अमेरिका में Two Party System है.
अमेरिका में इस समय भारी उथल-पुथल जारी है. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और अरबपति कारोबारी एलॉन मस्क के बीच की तल्खियां बढ़ती जा रही हैं. One Big, Beautiful Bill को लेकर दोनों में तनातनी बनी हुई है. इस बीच यह बिल अमेरिकी सीनेट से पारित हो गया है. ऐसे में मस्क ने नई राजनीतिक पार्टी बनाने का ऐलान किया. पर सवाल है कि क्या असल में दो प्रमुख राजनीतिक पार्टियों वाले मुल्क में तीसरे मोर्चे की जगह है? क्या अमेरिका में तीसरा प्रमुख राजनीतिक दल कारगर साबित होगा?
अमेरिका में फिलहाल दो प्रमुख राजनीतिक पार्टियां रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक है. ये दोनों ही पार्टियां 1850 के दशक से केंद्र की राजनीति में प्रभावी हैं. हालांकि, अमेरिका में कई अन्य पार्टियां जैसे- लिबरेटियन पार्टी, ग्रीन पार्टी, कॉन्स्टिट्यूशन पार्टी और अलायंस पार्टी भी है. लेकिन रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टियों के सामने इनका वजूद ना के बराबर है. ऐसे में एलॉन मस्क की नई पार्टी की महत्वाकांक्षा कितनी सफल होगी. यह तो समय बताएगा. लेकिन असल में जानना जरूरी है कि अमेरिका जैसे देश में तीसरे मोर्चे का वजूद ना के बराबर क्यों है?
अमेरिका में टू पार्टी सिस्टम 19वीं सदी से मजबूत है. डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन पार्टियां लंबे समय से सत्ता पर काबिज हैं, जिससे नई पार्टियों के लिए जगह बनाना मुश्किल है. 1850 के दशक में रिपब्लिकन पार्टी जब अस्तित्व में आई, तो उसने थर्ड पार्टी के तौर पर ही शुरुआत की थी. उस समय डेमोक्रेटिक और Whigs ही दो प्रमुख पार्टियां हुआ करती थी. हालांकि, 19वीं सदी में गुलामी पर छिड़ी बहस के बाद अन्य पार्टियों का भी गठन हुआ. लिबर्टी और फ्री सॉयल पार्टियां गुलामी के विरोध की वजह से अस्तित्व में आई थीं.
*/ /*-->*/
अमेरिका में तीसरी प्रमुख पार्टी का वजूद क्यों नहीं?
अमेरिकी पॉलिटिकल सिस्टम में डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन इन दो प्रमुख पार्टियों के अलावा तीसरे मोर्चे या तीसरी पार्टी की कोई खास जगह नहीं है. इसकी वजह है कि अमेरिका में Two Party System है. अमेरिका का राजनीतिक ताना-बाना कुछ इस तरह का है कि यहां सबसे अधिक वोट पाने वाला उम्मीदवार ही जीतता है. ज्यादा वोट पाना संसद पहुंचने की गारंटी नहीं होता. ऐसे में तीसरे पक्ष के लिए जीतना लगभग असंभव है क्योंकि वोटर्स अपना वोट बर्बाद होने के डर से दो प्रमुख पार्टियों में से ही चुनाव करते हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस के राष्ट्रपति को रूसी भाषा में भगवद गीता का एक विशेष संस्करण भेंट किया है. इससे पहले, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति को भी गीता का संस्करण दिया जा चुका है. यह भेंट भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत को साझा करने का प्रतीक है, जो विश्व के नेताओं के बीच मित्रता और सम्मान को दर्शाता है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को कई अनोखे और खास तोहफे भेंट किए हैं. इनमें असम की प्रसिद्ध ब्लैक टी, सुंदर सिल्वर का टी सेट, सिल्वर होर्स, मार्बल से बना चेस सेट, कश्मीरी केसर और श्रीमद्भगवदगीता की रूसी भाषा में एक प्रति शामिल है. इन विशेष तोहफों के जरिए भारत और रूस के बीच गहरे संबंधों को दर्शाया गया है.

चीनी सरकारी मीडिया ने शुक्रवार को राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के उन बयानों को प्रमुखता दी, जिनमें उन्होंने भारत और चीन को रूस का सबसे करीबी दोस्त बताया है. पुतिन ने कहा कि रूस को दोनों देशों के आपसी रिश्तों में दखल देने का कोई अधिकार नहीं. चीन ने पुतिन की भारत यात्रा पर अब तक आधिकारिक टिप्पणी नहीं की है, लेकिन वह नतीजों पर नजर रखे हुए है.

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के सम्मान में राष्ट्रपति भवन में शुक्रवार रात डिनर का आयोजन किया गया. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इस डिनर में लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को निमंत्रण नहीं दिया गया. इसके बावजूद कांग्रेस के सांसद शशि थरूर को बुलाया गया.

आज रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ शिखर वार्ता के मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत–रूस मित्रता एक ध्रुव तारे की तरह बनी रही है. यानी दोनों देशों का संबंध एक ऐसा अटल सत्य है, जिसकी स्थिति नहीं बदलती. सवाल ये है कि क्या पुतिन का ये भारत दौरा भारत-रूस संबंधों में मील का पत्थर साबित होने जा रहा है? क्या कच्चे तेल जैसे मसलों पर किसी दबाव में नहीं आने का दो टूक संकेत आज मिल गया? देखें हल्ला बोल.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मंदिर में जमा पैसा देवता की संपत्ति है और इसे आर्थिक संकट से जूझ रहे सहकारी बैंकों को बचाने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने केरल हाई कोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें थिरुनेल्ली मंदिर देवस्वोम की फिक्स्ड डिपॉजिट राशि वापस करने के निर्देश दिए गए थे. कोर्ट ने बैंकों की याचिकाएं खारिज कर दीं.







