
क्या कन्फ्यूज हो गए हैं उद्धव ठाकरे? नेहरू और सावरकर की राजनीति साथ-साथ करना चाहते हैं | Opinion
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उद्धव ठाकरे भले सावरकर विरोधियों के साथ रहते हों पर उन्होंने उनके लिए भारत रत्न की मांग की हमेशा से की है. एक बार फिर उद्धव ने केंद्र सरकार पर सावरकर को भारत रत्न न देने का आरोप लगाया है. तो क्या ये मान लिया जाए कि सावरकर के बहाने उद्धव ठाकरे अपनी राजनीतिक विचारधारा एक बार फिर पलटने वाले हैं?
महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर हलचल है. विधानसभा चुनावों में जहा मात खा चुके लोग नई रणनीति पर काम करने को बेचैन हैं वहीं मंत्रिमंडल में जगह न बना पाए लोग भी कुछ अलग करने की इच्छा व्यक्त कर रहे हैं. शिवसेना यूबीटी के प्रमुख उद्धव ठाकरे भी आजकल ऐसे संकेत दे रहे हैं जिससे लगता है कि वो अपनी वर्तमान राजनीतिक पोजिशन को बदलना चाह रहे हैं. उनकी पार्टी के अंदर से भी लगातार पुराने आक्रामक हिंदुत्व वाली राजनीतिक करने का दबाव बढ़ रहा है. फिलहाल ठाकरे शीतकालीन सत्र में भाग लेने के लिए मंगलवार को नागपुर पहुंचे थे. नागपुर में प्रेस कॉन्फ़्रेंस करते हुए उद्धव ठाकरे ने बड़ी मांग कर दी. उन्होंने कहा कि वीर सावरकर को भारत रत्न देना चाहिए. उद्धव ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि बीजेपी उन्हें भारत रत्न क्यों नहीं दे रही? उन्होंने कहा कि कांग्रेस और बीजेपी को सावरकर और नेहरू पर राजनीति करना बंद करनी चाहिए. इन दोनों ने देश के लिए योगदान दिया है और अब देश की जनता हमारी ओर देख रही है. उनके नामों पर बहस का कोई मतलब नहीं है.
1-क्या उद्धव ठाकरे को सावरकर के लिए भारत रत्न मांगने का हक है?
देखा जाए तो उद्धव ठाकरे अब विनायक दामोदर सावरकर को भारत रत्न देने की मांग करने का हक खो चुके हैं. क्योंकि जिस तरह उनके साथी दल सावरकर का मजाक उड़ाते हैं और वो एक बार के लिए अनौपचारिक तौर पर भी उन्हें मना नहीं कर पाते हैं. इससे ऐसा लगता है कि उन्होंने सावरकर के अपमान से समझौता कर लिया है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी इतनी बार सावरकर को माफीवीर बोल चुके हैं पर उद्धव ने कभी भी उनके बयान पर अपनी सफाई नहीं दी. या कभी महाविकास अघाडी की बैठकों में ये कह कर भी उन्होंने अपनी ओर से विरोध नहीं प्रकट किया कि राहुल गांधी या कांग्रेस को सावरकर का अपमान नहीं करना चाहिए. उद्धव ठाकरे ने अगर मजबूती से अपनी बात रखी होती तो शायद जनता में उनके प्रति सम्मान भी बना रहता. महायुति में शामिल अजित पवार ने डंके की चोट पर कहा कि उन्हें अपने प्रत्याशियों के लिए बीजेपी के बड़े नेताओं की सभाएं नहीं करानी है. इतना ही नहीं पीएम मोदी के साथ अंतिम दौर के विधानसभा चुनावों में मंच शेयर करने से भी मना कर दिया. इस तरह की बातें उद्धव ठाकरे भी राहुल गांधी के साथ कर सकते थे. पर उन्होंने बीच का रास्ता अपनाया. नतीजा हुआ कि न हिंदुओं का वोट मिला और न ही मुसलमानों ने उन्हें भाव दिया.
2-केंद्र सरकार भी सावरकर को भारत रत्न देने में क्यों आनाकानी कर रही?
वैसे उद्धव ठाकरे की इस बात में दम है कि केंद्र सरकार सावरकर को भारत रत्न क्यों नहीं दे रही है. अभी पिछले साल ही बिहार के समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर, लाल कृष्ण आडवाणी , कृषि वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन आदि को भारत रत्न दिया गया. महाराष्ट्र में चुनाव होने थे ये पता था फिर भी सावरकर को भारत रत्न देने की मांग पर विचार नहीं किया गया. चूंकि कर्पूरी ठाकुर को भी सरकार ने मरणोपरांत ही भारत रत्न दिया था इसलिए ये भी नहीं कहा जा सकता कि सरकार की पॉलिसी प्रभावित हो रही थी. सावरकर को भारत रत्न देने से सरकार क्यों बच रही है यह समझ में नहीं आ रहा है.
3-क्या कट्टर हिंदुत्व की राजनीति की ओर फिर लौटना चाहते हैं उद्धव

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