क्या इन शिक्षकों की नौकरियां खत्म कर रहा NMC? गाइडलाइंस का हो रहा विरोध
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NMC ने गैर-चिकित्सक शिक्षकों के नियुक्ति का कोटा घटाकर 15% कर दिया है. पहले यह बायोकेमिस्ट्री में 50%, एनेटोमी, बायोकेमिस्ट्री, फिजियोलॉजी, फार्माकोलॉजी और माइक्रोबायोलॉजी में 30% था. फार्माकोलॉजी और माइक्रोबायोलॉजी को कोटे से पूरी तरह से हटा दिया गया है.
नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) ने हाल ही में एनॉटोमी, बायोकेमिस्ट्री, फिजियोलॉजी, फार्माकोलॉजी और माइक्रोबायोलॉजी जैसी गैर-क्लिनिकल विशेषज्ञता रखने वाले यानी नॉन-मेडिकल टीचर के लिए गाइडलाइंस जारी है. एनएमसी ने इनकी नियुक्ति का कोटा घटाने के साथ-साथ ट्यूटर के गैर-शिक्षण पद के लिए पीएचडी को जरूरी किया है. गाइडलाइंस जारी होने के बाद से देशभर के नॉन-मेडिकल टीचर इसका विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि इससे उनकी नौकरियां खत्म हो जाएंगी.
मेडिकल M.Sc योग्यता रखने वाले व्यक्तियों के लिए रजिस्टर्ड राष्ट्रीय संघ यानी नेशनल एमएससी मेडिकल टीचर्स एसोसिएशन (NMMTA) ने सोमवार, 21 अगस्त को नई दिल्ली में एनएमसी की गाइडलाइंस का जमकर विरोध किया. इस विरोध प्रदर्शन में देशभर के गैर-चिकित्सक शिक्षक शामिल हुए, जिनमें मेडिकल एमएससी और पीएडी डिग्री वाले शामिल थे.
क्या है मामला? दरअसल, मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) की जगह नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) को लाया गया है. NMC ने गैर-चिकित्सक शिक्षकों के नियुक्ति का कोटा घटाकर 15% कर दिया है. पहले यह बायोकेमिस्ट्री में 50%, एनेटोमी, बायोकेमिस्ट्री, फिजियोलॉजी, फार्माकोलॉजी और माइक्रोबायोलॉजी में 30% था. फार्माकोलॉजी और माइक्रोबायोलॉजी को कोटे से पूरी तरह से हटा दिया गया है. NMMTA के अनुसार, नियुक्ति कोटा को घटाने से एक विभाग में केवल एक या दो शिक्षकों की नियुक्ति होगी. फार्माकोलॉजी और माइक्रोबायोलॉजी वाले देश में कहीं भी आवेदन नहीं कर सकेंगे. शिक्षक नौकरियां खो देंगे. मेडिकल M.Sc के छात्रों के पास अपने सिलेबस पूरा करने के बाद नौकरी की कोई संभावना नहीं है.
NMMTA की क्या मांग है? एसोशिएशन का कहा है कि हम गैर-चिकित्सक शिक्षकों के नियुक्ति का कोटा को बदलने के लिए नहीं कह रहे हैं. हम 30% आरक्षण भी नहीं मांग रहे हैं. जहां भी चिकित्सा शिक्षक उपलब्ध नहीं हैं, वहां हम 30% तक ले जाने के लिए कह रहे हैं. इसमें समस्या क्या है? यह श्रेष्ठता की भावना है और एक गैर-एमबीबीएस सहकर्मी के साथ समान स्तर पर सह-अस्तित्व में रहने से इनकार है. यह राजनीति अधिकतर घमंड और पूर्वाग्रह और नौकरियों में एकाधिकार के बारे में है.
एनएमएमटीए का कहा कहना है कि "केवल डॉक्टरों को ही मेडिकल छात्रों को पढ़ाना चाहिए". हां, क्लिनिकल विषय केवल एमडी/एमएस योग्यता वाले डॉक्टरों द्वारा ही पढ़ाए जाने चाहिए. लेकिन यह नॉन-मेडिकल विषयों के लिए जरूरी नहीं है, जो बेसिक मेडिकल साइंस है. मेडिकल एजुकेशन निश्चित रूप से अपने एमबीबीएस कोर्स के दौरान अपने अनुभव के आधार पर इनपुट दे सकते हैं. हमारा पीजी कोर्स एमडी कोर्स के समान है, हम दोनों को समान रूप से पढ़ाया और प्रशिक्षित किया गया है; हम अयोग्य कैसे हैं?
नॉन-मेडिकल टीचर के लिए PhD की मांग पर भी सवाल इसके अलावा बोर्ड ने गैर-चिकित्सक शिक्षकों को लेकर दूसरे बदलाव किए हैं जैसे कि ट्यूटर के गैर-शिक्षण पद के लिए एक Ph.D योग्यता की मांग और परीक्षक की भूमिका से वंचित करने की कोशिश. ये शिक्षक विभिन्न मेडिकल कॉलेजों में ट्यूटर, सहायक प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर, प्रोफेसर और विभागों के हेड के रूप में सेवा देते हैं. एसोसिएशन ने यूजीसी का हवाला देते हुए कहा कि जब सहायक प्रोफेसर के लिए पीएचडी को अनिवार्य नहीं किया गया है, लेकिन NMC ने इसे सबसे कम गैर-शिक्षण पद के लिए भी जरूरी बना दिया है. हालांकि सरकार ने NMC को मेडिकल शिक्षकों की नियुक्तियों के लिए अभी पूर्व में MCI के दिशा-निर्देशों का ही पालन करने के निर्देश दिए. यह आदेश NMMTA की दिल्ली हाईकोर्ट में दायर अर्जी पर फैसला आने तक लागू रहेगा.
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