
कैसे मणिपुर हिंसा से 2 फुटबॉल खिलाड़ियों का करियर दांव पर लगा!
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देश का पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर तीन मई को अचानक जल उठा था. मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग के विरोध में निकाली गई रैली में हिंसा भड़क गई थी. अब तक 9 हजार से ज्यादा लोगों को विस्थापित किया जा चुका है.
हिंसा की आग में जलते हुए मणिपुर को एक हफ्ते से ज्यादा हो गया है. लेकिन अभी तक राज्य में पूरी तरह से शांति बहाल नहीं हो पाई है. हिंसा में राज्य के दो युवा फुटबॉल खिलाड़ियों का करियर भी खतरे में पड़ गया है. ये दोनों खिलाड़ी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं.
भारत के लिए खेलने वाले ये दोनों खिलाड़ी कोन्शाम चिंगलेनसाना सिंह और थॉन्गकोसेम सेम्बोई हाओकिप हैं. इनमें से एक चिंगलेनसाना सिंह मेतेई समुदाय से हैं, जो कुकी क्षेत्र में रहते हैं जबकि सेम्बोई हाओकिप कुकी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं और मेतेई बाहुल्य क्षेत्र में रहते हैं. इस हिंसा की वजह से दोनों खिलाड़ियों को अपने घर छोड़ने पड़े और किराए के घरों में रहने को मजबूर होना पड़ा.
चिंगलेनसाना सिंह इंडियन सुपर लीग में हैदराबाद एफसी की ओर से खेलते हैं. जब उन्हें मणिपुर हिंसा की खबर मिली तो वह अपनी टीम के साथ थे. उन्हें घर पहुंचने में दिक्कतों का सामना करना पड़ा. सिंह ने कहा कि उन्हें 15 मई को इंडियन नेशनल फुटबॉल टीम कैंप में शामिल होना था. लेकिन हिंसा की वजह से उन्होंने घर पर ही रुकने का फैसला किया.
ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन के मुताबिक, सिंह ने अपने हेड कोच इगोर स्टिमैक को इस समस्या के बारे में बताया था. उन्होंने कहा था कि वह जल्द ही टीम से जुड़ेंगे. वहीं, ईस्ट बंगाल एफसी के लिए खेलने वाले सेम्बोई हाओकिप को भी हिंसा की वजह से अपने परिवार के साथ रहना पड़ा.
कैसे शुरू हुई हिंसा?
- तीन मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर (ATSUM) ने 'आदिवासी एकता मार्च' निकाला. ये रैली चुरचांदपुर के तोरबंग इलाके में निकाली गई.

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