कहानी उम्मीद की: हार गया 'डिप्रेशन' जब कोटा छात्र ने NEET की तैयारी छोड़ शुरू किया बिजनेस...
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करन बताते हैं, साल 2022 में 12-13 सितंबर के दिन नीट का एग्जाम था. उस दिन तनाव के कारण मेरा ब्लड प्रेशर बढ़ गया, बुखार आ गया, बहुत तेज घबराहट हो रही थी. पापा ने जाकर हॉस्पिटल में एडमिट कराया. उसी दिन मेरे पापा ने मुझसे कहा कि ये नीट इतनी बड़ी चीज नहीं है कि खुद को खत्म कर लो.
कोटा से आ रही आत्महत्या की दहलाने वाली खबरों के बीच कई उम्मीद की कहानियां भी हैं. ये वो कहानियां हैं जो थोड़ी देर हम सबको ठिठककर सोचने पर मजबूर कर देती हैं. करन जैसे छात्रों की कहानी बताती है कि डॉक्टर-इंजीनियर बनने का सपना बहुत से छात्रों के लिए एक जिद, एक मजबूरी या एक आखिरी रास्ते जैसा हो गया है. आइए करन मित्तल की कहानी उन्हीं की जुबानी जानते हैं.
मैं करन मित्तल जिसकी पहचान 2019 तक एक नीट एस्पिरेंट से ज्यादा कुछ नहीं थी. आज मैं एक रेस्तरां संचालक और एक ऐसा व्यक्ति हूं जो समय आने पर कई जरूरतमंदों को जॉब देने की इच्छा रखता है. मेरे भीतर इस बदले हुए करन ने हृदय रोग विशेषज्ञ बनने के सपने को थोड़ा अलग मोड़ दिया है. मैं अब चाहता हूं कि एक ऐसा व्यक्ति बनूं जो लोगों के हृदय को जीत ले. आज से दो साल पहले मेरे भीतर इतनी हिम्मत नहीं थी.
पहले मैं आपको अपना परिचय देता हूं, मैं भरतपुर राजस्थान का रहने वाला हूं. साल 2018 में 12वीं की परीक्षा देने के बाद मैंने साल 2019 से कोटा में दो साल नीट की तैयारी की थी. मेरे साथ पापा ने दादी को भी भेजा था. वहां कोटा में रहकर मैंने NEET के दो अटेंम्प्ट दिए. मैं इसमें सफल नहीं हो पा रहा था. इधर, कोरोना की दस्तक हुई तो धीरे-धीरे मेरे पापा का टेंट में कैटरिंग के काम में काफी नुकसान हुआ.
मेरे मौसा जी आरएमल हॉस्पिटल लखनऊ में जॉब करते हैं. उन्होंने पापा से कहा कि यहां अस्पताल में खाना देने का काम देख लो. पापा वहां काम करने लगे, लेकिन अकेले ये काम काफी मुश्किल था. इधर, मैं नीट की तैयारी को लेकर बहुत ज्यादा टेंशन में आ गया था. मेरा सपना कॉर्डियोलॉजिस्ट बनना था जोकि सोते-जागते, उठते बैठते मेरे सिर पर हावी रहता था. मैं आपको बताऊं कि मुझे शुरुआत में कोटा में इतनी दिक्कत नहीं थी, पर धीरे-धीरे मैं तनाव में रहने लगा. मेरे साथ वाले कुछ दोस्तों का सेलेक्शन हो गया था, उनसे भी मेरा संपर्क कम हो गया था. एक अजीब सा चलन है कि जब दोस्त आगे निकल जाते हें तो कम मतलब रखते हैं. धीरे-धीरे अकेलापन और मायूसी मुझे घेरने लगी. हर वक्त किताबों के अक्षर ही आंखों के सामने नाचते थे. मैं बस पढ़ाई और पढ़ाई के अलावा कुछ भी नहीं कर पा रहा था.
फिर दो साल बाद मैं कोटा से लखनऊ आ गया. मेरे पापा यहां लखनऊ में रहते थे. इसके बाद साल 2022 में 12-13 सितंबर के दिन नीट का एग्जाम था. उस दिन तनाव के कारण मेरा ब्लड प्रेशर बढ़ गया, बुखार आ गया, बहुत तेज घबराहट हो रही थी. पापा ने जाकर हॉस्पिटल में एडमिट कराया. उसी दिन मेरे पापा ने मुझसे कहा कि ये नीट इतनी बड़ी चीज नहीं है कि खुद को खत्म कर लो. वैसे, सच कहूं तो उस मैं सुसाइड का तो नहीं सोच रहा था, लेकिन एक अनदेखा प्रेशर मुझे दबाए जा रहा था. लग रहा था कि जिस हिसाब से तैयारी कर रहा हूं, मेरा सेलेक्शन हो पाएगा कि नहीं.. मैं इतना पढ़ता हूं फिर भी रिजल्ट आ पाएगा क्या.
नहीं लिया सोसायटी का प्रेशर मेरे मामले में सबसे अच्छी बात यह रही कि मैंने कभी सोसाइटी का प्रेशर नहीं लिया. उसके पीछे ये वजह थी कि मैं 10वीं तक वीक था. सोशल मेलमिलाप से लेकर पढ़ाई तक सबमें कमजोर था. फिर 12वीं में तैयारी की और 12वीं में अच्छे नंबर ले आया तो मेरे बारे में कभी इतनी अपेक्षाएं समाज को नहीं थीं, लेकिन पेरेंट्स को तो थी हीं, मगर वो हर वक्त मुझ पर अपनी इच्छाएं थोपने से बचते थे. पापा ने तो यहां तक समझाया कि हम मारवाड़ी हैं और मारवाड़ी धंधा अच्छी तरह से कर सकता है. उन्होंने कहा कि तू किसी की नौकरी मत कर, बल्कि दूसरों को नौकरी दे. मुझे लगता है कि तू बिजनेस के लिए ही बना है. इसी तरह छोटी बहन है जो ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रही है. उसने भी सढझाया कि हायर स्टडीज में बहुत अच्छे विकल्प हैं.

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