
कत्ल का शौक, लाश के साथ कुकर्म... दिल दहला देगी इस आदमखोर गे सीरियल किलर की कहानी
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जुर्म की दुनिया में कुछ ऐसे लोगों भी होते हैं, जो अपराध के लिए ही जीने लगते हैं. मतलब ये कि जुर्म ही उनकी जिंदगी का मकसद बन जाता है. उनके लिए किसी की जान लेना महज एक खेल बनकर रह जाता है. उन्हें लोगों की जान लेने में मजा आने लगता है या यूं कहें कि उन्हें कत्ल करने की लत लग जाती है.
जुर्म की दुनिया में कई तरह के लोग होते हैं, जो अलग-अलग अपराध करते हैं. लेकिन कुछ ऐसे लोगों भी होते हैं, जो अपराध करने के लिए ही जीने लगते हैं. मतलब ये कि जुर्म ही उनकी जिंदगी का मकसद बन जाता है. उनके लिए किसी की जान लेना महज एक खेल बनकर रह जाता है. उन्हें लोगों की जान लेने में मजा आने लगता है या यूं कहें कि उन्हें कत्ल करने की लत लग जाती है. आम भाषा में कहें तो ऐसी खौफनाक लत रखने वालों को सीरियल किलर कहा जाता है. ये ऐसे कातिल होते हैं कि एक बाद एक कत्ल करते जाते हैं क्योंकि उन्हें इसी काम में मजा आता है. आज कहानी ऐसे ही एक खौफनाक सीरियल किलर की. जिसका नाम था जेफ्री डामर.
कौन था जेफ्री डामर? जेफ्री डामर का जन्म 21 मई 1960 को अमेरिका के विस्कॉन्सिन में हुआ था. उसके पिता लियोनेल हर्बर्ट डामर एक रिसर्च केमिस्ट थे. कहा जाता है कि उसके माता-पिता बचपन से ही उसपर ध्यान नहीं दिया करते थे. मां-बाप की अनदेखी और कम तवज्जो मिलने की वजह से वह जेफ्री को अकेलापन महसूस होता था.
दरअसल, जब जेफ्री पहली कक्षा में पहुंचा, तो उसके पिता लियोनेल को रिसर्च और अध्ययन के लिए ज्यादातर घर से दूर रहना पड़ता था. जबकि उसकी मां जॉयस एक हाइपोकॉन्ड्रिअक जैसे एक अवसाद से पीड़ित थी. वो जेफ्री पर ध्यान देने के बजाय ज्यादातर वक्त बिस्तर बिताती थी. नतीजतन, मां-बाप ने अपने बेटे को ज्यादा वक्त नहीं दिया, जिसकी वजह से उसका अकेलापन बढ़ता गया.
सर्जरी के बाद शांत रहने लगा था जेफ्री वैसे जेफ्री एक खुशमिजाज बच्चा हुआ करता था, लेकिन अपने चौथे जन्मदिन से कुछ वक्त पहले उसे एक सर्जरी से गुजरना पड़ा था. जिसकी वजह से वो काफी शांत रहने लगा था. उसे स्कूल में डरपोक माना जाता था. लेकिन उसकी एक टीचर इस बात पर गौर किया कि पिता की गैरमौजूदगी और मां की बीमारियों के कारण डामर ऐसा होता जा रहा था. स्कूल में उसके दोस्तों की संख्या भी ना के बराबर ही थी.
मरे हुए जानवारों में दिलचस्पी मगर चार साल की उम्र के बाद ही जेफ्री ने मरे हुए जानवरों और उनकी हड्डियों में दिलचस्पी लेना शुरू कर दिया था. वो अपने पिता को जानवरों की हड्डियों को ब्लीच कर साफ करते और उन्हें संभाल कर रखते हुए देखता था. वो बड़े गौर से अपने पिता को ये सब करते हुए देखता था. उसे समझने की कोशिश करता था. एक बार डिनर करते वक्त डामर ने अपने पिता लियोनेल से पूछा था कि अगर चिकन की हड्डियों को ब्लीच में रखा जाए, तो क्या होगा? लियोनेल ने इस सवाल को अपने बेटे की वैज्ञानिक जिज्ञासा मानते हुए उसके सामने जानवरों की हड्डियों को सुरक्षित रूप से ब्लीच और संरक्षित करके दिखाया था. वहीं डामर ने ये सब सीखा था.
छोटे भाई का नामकरण अक्टूबर 1966 में, जेफ्री डामर का परिवार डोयलेस्टाउन, ओहियो शिफ्ट हो गया था. जब उसकी मां जॉयस ने उसी साल दिसंबर उसके भाई को जन्म दिया, तो उसका नामकरण करने की जिम्मेदारी जेफ्री को ही दी गई थी. उसने अपने छोटे भाई का नाम डेविड रखा था. उसी साल जेफ्री के पिता लियोनेल ने अपनी डिग्री हासिल कर ली थी और वे एक्रोन, ओहियो में एक एक्सपर्ट केमिस्ट के तौर पर काम करने लगे थे.

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