
उद्धव ठाकरे को एकनाथ शिंदे का करारा जवाब, 'गद्दार' ही शिवसेना की विरासत का असली हकदार । Opinion
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महाराष्ट्र चुनाव के नतीजों से एक बात तो साफ है, उद्धव ठाकरे विरासत में मिली राजनीति को नहीं संभाल सके - वो छोटी छोटी चीजों में उलझे रहे, और एकनाथ शिंदे ने पैरों के नीचे की सारी जमीन खींच कर महाराष्ट्र की राजनीति में ठाकरे परिवार को पैदल कर दिया है.
ये ठीक है कि उद्धव ठाकरे के कट्टर प्रतिद्वंद्वी एकनाथ शिंदे को बीजेपी का सपोर्ट मिला, लेकिन महाविकास अघाड़ी में शरद पवार की एनसीपी और लोकसभा चुनाव में बेहतरीन प्रदर्शन करने वाली कांग्रेस भी तो साथ थी - और झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजे भी तो मिसाल ही हैं.
परिस्थितियां तो हेमंत सोरेन के भी खिलाफ थीं, लेकिन उद्धव ठाकरे ने पूरा वक्त एकनाथ शिंदे और बीजेपी को भला बुरा बोलने में ही बिता दिया - और न हेमंत सोरेन की तरह सहानुभूति हासिल सके, न एकनाथ शिंदे को शिवसेना की विरासत की हिस्सेदारी से ही हटा सके - और सारी बातों के बावजूद महाराष्ट्र के लोगों ने ‘गद्दार’ को ही असली हकदार मान लिया. एकनाथ शिंदे को उद्धव हमेशा गद्दार कहते आए हैं. और चुनाव के दौरान मंचों से उन्होंने यह बात बार-बार दोहराई.
हिंदुत्व के एजेंडे वाले खांचे में उद्धव की राजनीति खत्म
क्या उद्धव ठाकरे की राजनीति खत्म हो गई है? सवाल तो बनता है, लेकिन जवाब अभी नहीं मिल सकता. और, अभी ऐसे जवाब की अपेक्षा भी नहीं होनी चाहिये. ऐसा इसलिए भी क्योंकि बीजेपी के लगातार कैंपेन के बावजूद कांग्रेस मुक्त भारत का सपना पूरा नहीं हो सका है - लेकिन, एक बात तो पक्की है कि अगर ठाकरे परिवार ने बाउंस-बैक के प्रयास नहीं किये तो मान कर चलना होगा कि ठाकरे परिवार मुक्त महाराष्ट्र हो चुका है. माहिम में अमित ठाकरे भी तीसरे नंबर पर पहुंच चुके हैं.
उद्धव ठाकरे को हिंदुत्व का एजेंडा विरासत में मिला था, लेकिन अभी तो लगता है जैसे सब कुछ गवां दिया हो. कुछ समय के लिए शिवसेना कोे कट्टर हिंदुत्व की राजनीति से उदार बनाने के लिए उद्धव ठाकरे ने तारीफ जरूर बटोरी थी, लेकिन शरद पवार और कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने के साथ ही अति-उदारवादी बनना उद्धव ठाकरे की राजनीति के लिए मौत का कुआं साबित हुआ है.
मातोश्री में बैठे रह कर भी उद्धव ठाकरे को मालूम होना चाहिये था कि महाराष्ट्र की राजनीति में शिवसेना पार्टी विद डिफरेंस कट्टर हिंदुत्व की राजनीति के बूते ही हुआ करती थी, प्रगतिवादी इन्नोवेशन और मॉडिफिकेशन उनके हिस्से की पार्टी के ताबूत के आखिरी कील साबित होते लग रहे हैं - अब तो बीजेपी के साथ जाने जैसी बातें भी खत्म हो गई लगती हैं, जो चुनावों के दौरान काफी चर्चा में थीं.

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