उत्तराखंड सुरंग हादसा: 41 मजदूर तो बाहर आ गए पर ये 5 सवाल वहीं फंसे रह गए
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उत्तराखंड का टनल हादासा देश में तमाम प्रोजेक्ट्स के लिए काम कर रही कंपनियों के लिए नजीर बन सकती है. इसलिए जरूरी है कि सिलक्यारा सुरंग बनाने वाली कंपनी ने किस हद तक लापरवाही की इसकी जांच की जाए और दोषी पाए जाने पर उसे ब्लैकलिस्टेड भी किया जाए.
उत्तराखंड के सिलक्यारा में टनल से 41 मजदूरों को सकुशल निकाल लिया गया है. इसके लिए सरकार की तारीफ की जानी चाहिए. रेस्क्यू ऑपरेशन में सरकार का रवैया इतिहास में हुए हादसों से बिल्कुल अलग था. उत्तराखंड के चीफ मिनिस्टर पुष्कर सिंह धामी हों या केंद्रीय मंत्री वीके सिंह, हादसे वाली जगह ये लोग सब काम छोड़कर लगातार कैंप कर रहे थे. शासन ने देशी विशेषज्ञों से लेकर विदेशों तक से एक्सपर्ट को बुलाया. विज्ञान के साथ अध्यात्म पर भी भरोसा किया गया. स्थानीय देवता का अस्थाई मंदिर बनाकर पूजन अर्चन भी किया गया . पर इन सबकी नौबत ही क्यों आई? यह सवाल तो उठेगा ही. इस सवाल का जवाब मिलना इसलिए भी जरूरी है कि यह कोई पहली घटना नहीं है और न ही यह अंतिम घटना है. उत्तराखंड में इस तरह की कई दर्जन परियोजनाओं पर काम हो रहा है. इसलिए इन सवालों का जवाब ढूंढना बहुत जरूरी है. आम लोग इस तरह के कुछ सवालों का जवाब चाहते हैं.
1- एस्केप टनल क्यों नहीं बनाई गई थी?
सिल्कयारा सुरंग उत्तराखंड में 12,000 करोड़ की लागत से बन रहे चारधाम राजमार्ग परियोजना का हिस्सा है, जिसे बनाने का ऐलान साल 2018 में हुआ था. हादसे वाली सुरंग सिल्कयारा जिसकी लंबाई 4.5 किलोमीटर है की लागत तकरीबन 1,383 करोड़ रुपये आंकी गई है. इस सुरंग में एस्केप टनल बनाने का भी प्रावधान था. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार टनल के डीपीआर में एस्केप टनल बनाए जाने की बात है. एक्सपर्ट्स के अनुसार तीन किलोमीटर के लंबी सुरंग अगर बन रही है तो अनिवार्य रूप से एस्केप टनल बनाया जाना चाहिए. डीपीआर के प्रोजेक्ट डिजाइन में एस्केप टनल होने के बावजूद कंस्ट्रक्शन कंपनी ने क्यों इसे अनदेखा किया इसका पता लगना जरूरी है. अगर एस्केप टनल और इमरजेंसी एग्जिट की व्यवस्था की गई होती तो 41 लोगों की जान पर नहीं बन आई होती. इस गंभीर सुरक्षा खामी की अवहेलना क्यों और कैसे हुई का पता लगने पर ही भविष्य में होने वाले हादसों को हम रोक सकेंगे.
2- क्यों नहीं था ह्यूम पाइप?
जब पहाड़ी क्षेत्रों में इस तरह की खुदाई वाले काम होते हैं तो ह्यूम पाइप का प्रयोग किया जाता है. ह्यूम पाइप किसी धातु का बना होता है. और जैसे जैसे काम आगे बढ़ता है यह भी बढ़ता रहता है. अगर कभी मलबा भरभराकर गिरा तो मजदूर ह्यूम पाइप में घुस जाते हैं और सुरक्षित स्थान तक पाइप के सहारे निकल जाते हैं. बताया जा रहा है कि यहां निर्माण स्थल पर ह्यूम पाइप तो था पर उसे एक महीने पहले ही हटा लिया गया था. दरअसल कॉन्ट्रेक्टर कई जगह काम करते हैं और सुरक्षा उपकरणों का इस्तेमाल केवल दिखावे के लिए करते हैं. हो सकता है कि किसी और जगह काम शुरू हो रहा हो, और वहां ह्यूम पाइप का दिखावा जरूरी रहा हो . इसलिए यहां से उठाकर दूसरी जगह ह्यूम पाइप भेज दिया गया हो. अगर ह्यूम पाइप रहे होते तो भी 41 जिंदगियों की सांसे इतने दिनों तक नहीं अटकी रहतीं.
3-क्या सिलक्यारा में भी ब्लास्ट एंड ड्रिलिंग मशीन का हो रहा है इस्तेमाल?
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