
ईरान जैसी क्रांति का सपना, जनरल जिया का प्लान और 1987 का वो चुनाव... कश्मीर में ऐसे पनपा आतंकवाद
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कश्मीर का इतिहास मुस्लिम राजवंशों से भरा पड़ा है. ये सिलसिला 14वीं सदी में शाह मीर से शुरू हुआ था और फिर आगे चलकर अब्दुल्ला और मुफ्ती जैसे राजनीतिक परिवारों तक पहुंचा. लेकिन एक दिलचस्प बात ये है कि कश्मीर में मुस्लिम दौर की शुरुआत एक तिब्बती राजकुमार रिंचन शाह से हुई थी. करीब 1320 के आस-पास उसने सत्ता अपने हाथ में ले ली थी.
हमारी सीरीज के दूसरे भाग में आज हम 1980 से 1989 की गर्मियों तक के उस दौर को याद कर रहे हैं, जब कश्मीर में सब कुछ शांत था. ये वो वक्त था, जब सब कुछ ठीक लग रहा था, लेकिन अंदर ही अंदर एक तूफान धीरे-धीरे तैयार हो रहा था.
कश्मीर का इतिहास मुस्लिम राजवंशों से भरा पड़ा है. ये सिलसिला 14वीं सदी में शाह मीर से शुरू हुआ था और फिर आगे चलकर अब्दुल्ला और मुफ्ती जैसे राजनीतिक परिवारों तक पहुंचा. लेकिन एक दिलचस्प बात ये है कि कश्मीर में मुस्लिम दौर की शुरुआत एक तिब्बती राजकुमार रिंचन शाह से हुई थी. करीब 1320 के आस-पास उसने सत्ता अपने हाथ में ले ली थी.
रिंचन शाह ने इस्लाम कबूल कर लिया था. उस पर सूफी संत बुलबुल शाह का काफी असर था. रिंचन की मौत के बाद वहां के मुस्लिम अमीरों ने उसके बेटे हैदर को कैद कर लिया और शाह मीर को राजा बना दिया. यहीं से कश्मीर में पहली मुस्लिम हुकूमत की नींव पड़ी.
पहली बार जो कहा जाए एक लोकतांत्रिक राजवंश, उसकी शुरुआत शेख अब्दुल्ला ने की थी. 21 अगस्त को श्रीनगर के इक़बाल पार्क में पार्टी की एक बैठक में शेख अब्दुल्ला ने अपने बेटे फारूक अब्दुल्ला को नेशनल कॉन्फ्रेंस पार्टी का नया नेता घोषित किया. इस दौरान भीड़ में ज़ोर-ज़ोर से नारे लगे—"नेशनल, नेशनल, ऑल आर नेशनल!"
अब्दुल्ला परिवार से जुड़ी एक दिलचस्प कहानी भी है, जो ट्रिनिडाड के लेखक वी.एस. नायपॉल ने अपनी किताब An Area of Darkness में लिखी है. उन्होंने कश्मीर यात्रा के अपने अनुभव में बताया कि कैसे गुलमर्ग में एक यूरोपीयन होटल चलाने वाले को एक गरीब मुस्लिम लड़की से प्यार हो गया. लड़की ने शादी की शर्त रखी कि पहले उसे इस्लाम कबूल करना होगा. लड़के ने बिना देर किए इस्लाम अपना लिया. इस जोड़े- माइकल हेनरी नेडू और मीर जान से जन्मी अकबर जहां, जो आगे चलकर शेख अब्दुल्ला की पत्नी बनीं.

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