
ईरान: एंटी हिजाब कैंपेन में शामिल 3 और प्रदर्शनकारियों को मिली सजा-ए-मौत
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ईरान में एंटी हिजाब कैंपेन अभी शांत नहीं हुआ है. न सरकार झुकने को तैयार है और न ही प्रदर्शनकारी. इस बीच ईरान की सरकार ने 3 और प्रदर्शनकारियों के लिए मौत की सजा मुकर्रर कर दी है. हालांकि, ईरान की सरकार के इस फैसले का विरोध दुनिया भर और खासतौर पर पश्चिमी देशों में काफी हो रहा है.
ईरान में न ही हिजाब के खिलाफ विरोध थमने का नाम ले रहा है और न ही सरकार प्रदर्शनकारियों के खिलाफ सख्त कदम उठाने से पीछे हटती नजर आ रही है. महसा अमिनी की मौत के बाद ईरान में शुरू हुए प्रदर्शनों ने अब एक आंदोलन का रूप ले लिया है. हालांकि, इस्लामिक देश की सरकार इस इस आंदोलन को कुचलने की पूरी कोशिश कर रही है.
ईरान की एक अदालत ने सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले 3 और प्रदर्शनकारियों को मौत की सजा सुनाई है. उन पर 'ईश्वर के खिलाफ युद्ध छेड़ने' का आरोप है. प्रदर्शनकारियों पर इतनी सख्त कार्रवाई के बाद अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ईरान की आलोचना तेज हो गई है.
प्रदर्शन में शामिल 2 लोगों को हाल ही में ईरान के अंदर फांसी दी गई है. उन पर प्रदर्शन के दौरान सिक्योरिटी फोर्स के जवान की हत्या करने का आरोप था. इन दोनों में से एक कराटे चैंपियन था, जिसके पास कई राष्ट्रीय खिताब थे. लगातार लोगों की दी जा रही इस क्रूर सजा के लिए यूरोपीय संघ, संयुक्त राज्य अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देश लगातार ईरान की निंदा कर रहे हैं.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक जिन 3 प्रदर्शनकारियों को फांसी की सजा सुनाई गई है, उनके नाम सालेह मिरहाशमी, माजिद काजेमी और सईद याघौबी है. इन तीनों को इस्फ़हान शहर में सरकार विरोधी प्रदर्शनों के दौरान सरकार समर्थित मिलिशिया के लोगों की कथित हत्या का दोषी ठहराया गया था. दरअसल, ईरान में महसा अमिनी की मौत के बाद जारी सरकार विरोधी प्रदर्शनों को कुचलने में सरकार समर्थित मिलिशिया सबसे आगे रहे हैं.
ईरान की सरकार के इन फैसलों का पोप फ्रांसिस भी विरोध कर चुके हैं. तीन प्रदर्शनकारियों को मौत की सजा दिए जाने पर भी पोप ने ईरान सरकार का विरोध किया. उन्होंने कहा किय प्रदर्शनकारियों को मिल रही मौत की सजा से जीने का अधिकार खतरे में पड़ गया है. वहां महिलाओं के सम्मान के लिए प्रदर्शन हो रहे हैं. ईरान में प्रदर्शनकों की शुरुआत 16 सितंबर 2022 को हुई 22 वर्षीय कुर्द ईरानी महिला महसा अमिनी की मौत के बाद हुई थी, जिसने बाद में राष्ट्रव्यापी समर्थन हासिल कर लिया.
हिजाब न पहनने पर इन्हें मिली सजा

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