
इज़रायल और फिलीस्तीन बार-बार क्यों लड़ते हैं? अब क्यों भिड़े, कितनी पुरानी है दुश्मनी?
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इज़रायल और फिलीस्तीन के बीच फिर से संघर्ष हो रहा है, जो पुराने सभी ज़ख्मों को कुरेदने का काम कर रहा है. मौजूदा वक्त में इज़रायल और फिलीस्तीन क्यों आमने-सामने हैं, साथ ही इन दोनों की ये जंग कितनी पुरानी है, इसपर एक बार विस्तार से नज़र डाल लीजिए...
इज़रायल और फिलीस्तीन के बीच एक बार फिर संघर्ष शुरू हो गया है. ये वो वक्त है, जब हर साल दोनों देशों के बीच संघर्ष शुरू होता है. क्योंकि रमज़ान के महीने में फिलीस्तीन के लोग अपनी आज़ादी की आवाज़ बुलंद कर रहे होते हैं, जबकि इसी दौर में इज़रायल अपनी आज़ादी का जश्न मना रहा होता है. पिछले कुछ दिनों से इज़रायल और फिलीस्तीन के बीच संघर्ष हो रहा है, जो पुराने सभी ज़ख्मों को कुरेदने का काम कर रहा है. मौजूदा वक्त में इज़रायल और फिलीस्तीन क्यों आमने-सामने हैं, साथ ही इन दोनों की ये जंग कितनी पुरानी है, इसपर एक बार विस्तार से नज़र डाल लीजिए...इस बार क्यों भिड़े इज़रायल और फिलीस्तीन? फिलीस्तीन के प्रदर्शनकारी और इज़रायली पुलिस के बीच में पिछले कई दिनों से हर रोज़ संघर्ष हो रहा है. येरुशलम शहर के पुराने इलाके में ये संघर्ष हो रहा है, जहां यहूदी, मुस्लिम और ईसाइयों के पवित्र स्थल हैं. इस बार का ताज़ा संघर्ष रमज़ान की शुरुआत में हुआ, जब फिलीस्तीन के लोगों की ओर से प्रदर्शन शुरू किया गया और दुनिया में फिर अपनी मौजूदगी की मांग की जाने लगी. इसी प्रदर्शन को दबाने के लिए इज़रायल की पुलिस ने एक्शन शुरू किया. इज़रायल का कहना है कि फिलीस्तीन की ओर से आतंकवादी संगठन हमास ने येरुशलम और इज़रायल के शहरी इलाकों में रॉकेट दागे हैं, जिसके जवाब में इज़रायल के कार्रवाई की है. लेकिन अबतक के इस संघर्ष में दो दर्जन से अधिक लोगों की जान चली गई है और अभी भी ये संघर्ष रुक नहीं पाया है. आखिर क्या है इज़रायल और फिलीस्तीन के बीच की जंग? भूमध्य-सागर के किनारे बसे इज़रायल और फिलीस्तीन के बारे में इस तरह की भ्रांति है कि दोनों देशों के बीच की लड़ाई मुख्य रूप से धार्मिक है और हज़ारों वर्षों से चली आ रही है. हालांकि, अगर दोनों देशों के इतिहास को खंगालें तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. बल्कि ये साफ होता है कि ये लड़ाई सिर्फ और सिर्फ ज़मीन और अपनी पहचान की है, जिसे कई बार धार्मिक रूप से देखा जाता रहा है. इज़रायल और फिलीस्तीन के बीच की जंग कई हिस्सों में सामने आती है, जो 19वीं सदी की शुरुआत में और फिर दूसरे विश्व युद्ध के बाद भड़कती है. दोनों ही ओर से अलग-अलग दावे किए जाते हैं, पूरी कहानी समझने के लिए हर एक दावे को देखने की जरूरत है. मशहूर इतिहासकार बेनी मॉरिस ने अपनी किताब ‘The Birth of the Palestinian Refugee Problem Revisited’ में इस लड़ाई के बारे में लिखा है, ‘’पहले विश्व युद्ध, जिसने ओटोमन साम्राज्य को पूरी तरह से खत्म कर दिया था, उसने मिडिल ईस्ट की पूरी तस्वीर को बदल दिया, क्योंकि युद्ध के बाद लोगों में यहां पर राष्ट्रवाद की एक भावना पनपने लगी. तब यहां के लोगों ने भी दुनिया के अन्य देशों की तरह ही अपने अलग देश की मांग करना शुरू कर दिया.’’ किताब में बताया गया है, ‘’पहले विश्व युद्ध के बाद ये पूरा इलाका ब्रिटेन के हिस्से में आ गया, लेकिन जब यहूदियों ने अपने स्वतंत्र देश की मांग करना शुरू कर दिया, तब एक ज़ोरों की मांग ये भी उठी कि येरुशलम में यहूदियों के लिए एक जगह का निर्माण किया जाए, जिसे यहूदी सिर्फ अपना ही घर कहें.’’ इज़रायल और फिलीस्तीन की मांगों से जुड़ा एक हिस्सा 20वीं सदी की शुरुआत में शुरू हुए संघर्ष को गिनाता है.
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भारत आने से पहले रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने आजतक की मैनेजिंग एडिटर अंजना ओम कश्यप और इंडिया टुडे की फॉरेन अफेयर्स एडिटर गीता मोहन के साथ एक विशेष बातचीत की. इस बातचीत में पुतिन ने वैश्विक मुद्दों पर खुलकर अपनी राय दी, खासतौर पर रूस-यूक्रेन युद्ध पर. उन्होंने स्पष्ट किया कि इस युद्ध का दो ही समाधान हो सकते हैं— या तो रूस युद्ध के जरिए रिपब्लिक को आजाद कर दे या यूक्रेन अपने सैनिकों को वापस बुला ले. पुतिन के ये विचार पूरी दुनिया के लिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यह युद्ध अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गहरी चिंता का विषय बना हुआ है.

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