आदित्य ठाकरे-तेजस्वी यादव की मुलाकात के पीछे क्या है वजह?
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महाराष्ट्र सरकार में पूर्व मंत्री रहे आदित्य ठाकरे ने बिहार जाकर डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव से मुलाकात की. इसके बाद आदित्य ने कहा कि उनकी तेजस्वी के साथ ये पहली मीटिंग है. सभी युवाओं को साथ आना चाहिए और बेरोजगारी के मुद्दे को उठाना चाहिए. तेजस्वी ने आदित्य ठाकरे की मुलाकात बिहार के सीएम नीतीश कुमार से भी करवाई थी.
देश में विपक्ष आखिरकार अपने कंफर्ट जोन से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा है. लंबे अंतराल के बाद उसे एहसास हुआ है कि बिना उसके कुछ हासिल नहीं हो पाएगा. शायद इसीलिये राहुल गांधी भारत जोड़ो का नारा देकर हजारों मील पैदल यात्रा पर निकल पड़े हैं. महाराष्ट्र से उनकी यात्रा निकली तो मैंने देखा कि लोगों में जिज्ञासा थी कि ये यात्रा है क्या? हाल ही में शिवसेना उद्धव बालासाहब ठाकरे गुट के नेता आदित्य ठाकरे का बिहार के उपमुख्यमंत्री और लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव से मिलना भी इसी श्रेणी में आता है.
लालू यादव का विशेष उल्लेख सिर्फ इसीलिए कि आदित्य ठाकरे के दादा बालासाहब ठाकरे लालू यादव को लेकर क्या राय रखते थे ये उन्होने कई बार जाहिर की थी. खुद लालू यादव भी बालासाहब पर तीखी टिप्पणी करने में कोई लिहाज नहीं रखते थे. इस इतिहास को देखते हुए आदित्य को इस बात का ऐतबार था कि इस मुलाकात को लेकर बीजेपी और उनके चाचा की पार्टी एमएनएस लोगों के सामने क्या राय रखेगी, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने ये मुलाकात की.
इसकी शुरुआत भी कुछ साल पहले हो चुकी थी. दोनों हमउम्र नेता एक-दूसरे से संपर्क में थे, लेकिन आमने-सामने मिल नहीं पाए थे. इसबार उन्होंने मिलकर एक पोलिटिकल स्टेटमेंट दे दिया है. उनकी ये मुलाकात राजनीतिक कंफर्ट जोन से बाहर निकलना क्यों है, ये बात समझना जरूरी है. लेकिन इससे पहले बालासाहब-लालू यादव और महाराष्ट्र-बिहार के बीच रहा दिलचस्प राजनितीक रिश्ता समझना होगा.
बिहार में मराठीवादी पार्टियों की यानी शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना यानी एमएनएस की छवि बिहारी, उत्तर भारतीय विरोधी रही है. दोनों ही पार्टियों को ठाकरे परिवार चलाता है. इसीलिए ठाकरे परिवार का भी बिहारी और उत्तर भारतीय विरोधी माना जाना लाजिमी है. राज ठाकरे की एमएनएस को देखें तो 2006 में स्थापना के बाद से ही उसने उत्तर भारतीयों पर अपना निशाना साधना शुरू कर दिया था. मुंबई और आसपास के इलाकों में उत्तर भारतीय वोटरों के बढते प्रभाव को सामने रखकर एकबार फिर मराठी भाषी वोटबैंक को इकठ्ठा करने के लिए राज ठाकरे अपनी राजनीतिक जमीन तलाश रहे थे, लेकिन शिवसेना की यानी बालासाहब और उद्धव ठाकरे की शिवसेना की बात करें तो उन्होंने उत्तर भारतीयों के खिलाफ उग्र आंदोलन कभी नहीं किया.
जब हिंदुत्व के रंग में रंगी शिवसेना
शिवसेना के शुरुआती दिनों में बालासाहब और शिवसेना का निशाना दक्षिण भारतीयों पर रहा. यहां तक कि 1990 के बाद अपनी छवि को पूरी तरह से हिंदुत्व के रंग मे रंगने के बाद शिवसेना ने अपने वोट बेस को हिंदुत्व के सहारे गैर मराठी भाषी यानी गुजराती, बिहारी और उत्तर प्रदेश के मुंबई में बसे लोगों में फैलाने की कोशिश शुरू कर दी थी. इसीलिये मराठी में अपना मुखपत्र सामना शुरू करने के कुछ ही सालों बाद हिंदी मे दोपहर का सामना भी शुरू किया गया. दोपहर का सामना के बिहारी संपादक संजय निरूपम को मराठी सामना के संजय राउत से पहले ही राज्यसभा भेजा गया.
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