अलीगढ़ के एक गांव में आखिर कुछ लोगों ने अपने घरों पर क्यों लिखा- 'मकान बिकाऊ है'
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यह घटना अलीगढ़ के टप्पल थाना क्षेत्र की है. जहां गांव नूरपुर मवन दो पक्ष बारात चढ़ाने को लेकर आपस में भिड़ गए. एक पक्ष ने आरोप लगाते हुए कहा कि दूसरे पक्ष के लोगों ने बारात नहीं चढ़ने दी. उनकी बात नहीं मानने पर मारपीट और गाली गलोच की गई.
उत्तर प्रदेश का अलीगढ़ जिला किसी ना किसी बात को लेकर चर्चाओं में रहता है. अभी वहां जहरीली शराब का मामला ठंडा भी नहीं पड़ा कि एक गांव में बारात चढ़ाने को लेकर दो पक्ष आपस में भिड़ गए. फिर मामला पुलिस तक जा पहुंचा. इसके बाद एक पक्ष के कुछ लोगों ने अपने घरों पर 'मकान बिकाऊ है' लिख दिया. वहां पुलिस-प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी भी की गई. यह घटना अलीगढ़ के टप्पल थाना क्षेत्र की है. जहां गांव नूरपुर मवन दो पक्ष बारात चढ़ाने को लेकर आपस में भिड़ गए. एक पक्ष ने आरोप लगाते हुए कहा कि विशेष पक्ष के लोगों ने बारात नहीं चढ़ने दी. उनकी बात नहीं मानने पर मारपीट और गाली गलोच की गई. डीजे वाली गाड़ी में में भी तोड़फोड़ की गई. इस वारदात के संज्ञान में आने पर पुलिस ने 11 लोगों के खिलाफ नामजद मुकदमा पंजीकृत किया है. पुलिस ने 11 लोगों के खिलाफ एससी/एसटी की धारा भी लगाई है. हालांकि दूसरे पक्ष ने भी थाने में तहरीर दी थी. लेकिन उनकी तहरीर पर रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई.आम आदमी पार्टी की सांसद स्वाति मालीवाल ने एक इंटरव्यू में दिल्ली के सीएम हाउस में उनके साथ हुई बदसलूकी के बारे में खुलकर बताया. स्वाति मालीवाल ने कहा कि विभव कुमार आए और मुझे 7-8 थप्पड़ मारे. मुझे घसीटा. इस दौरान मेरा सिर टेबल से भी जा टकराया. मैं मदद के लिए बहुत चिल्लाई लेकिन बचाने के लिए कोई नहीं आया.
स्वाति मालीवाल ने कहा, 'विभव ने मुझे 7-8 थप्पड़ पूरी जोर से मारे. जब मैंने उन्हें पुश करने की कोशिश की तो उन्होंने मेरा पैर पकड़ लिया और मुझे नीचे घसीट दिया, उसमें मेरा सिर सेंटर टेबल से टकराया. मैं नीचे गिरी और फिर उन्होंने मुझे लातों से मारना शुरू किया. मैं बहुत जोर-जोर से चीख-चीखकर हेल्प मांग रही थी लेकिन कोई मदद के लिए नहीं आया.'
राहुल गांधी लगातार जिस तरह कांग्रेस पार्टी और अपने पूर्वजों को घेर रहे हैं उससे क्या कांग्रेस का नुकसान नहीं हो रहा है? पर इसे इतने साधारण रूप में भी नहीं लिया जा सकता है. हो सकता है कि राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जितना बेहतर कम्युनिकेटर न हों, बेहतर संगठनकर्ता न हों पर ऐसा भी नहीं हैं कि उन्हें रणनीतिकार के तौर पर भी खारिज कर दिया जाए.