
अमेरिका में जन्मे खालखा की कहानी जिसे 8 साल की उम्र में दलाई लामा ने घोषित किया अवतार
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बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा ने चीन को जोरदार झटका दिया है. उन्होंने एक 8 साल के बच्चे को तिब्बती बौद्ध धर्म में तीसरे सबसे महत्वपूर्ण धर्मगुरु के रूप में 10वें खालखा जेट्सन धम्पा रिनपोछे के रूप में मान्यता दी है. बच्चे का जन्म अमेरिका में हुआ था. धर्मशाला में इस महीने की शुरुआत में हुए एक कार्यक्रम में दलाई लामा ने यह घोषणा की थी.
तिब्बत के बौद्ध धर्म के आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने आठ साल के अमेरिका में जन्मे मंगोलियाई बच्चे को एक आध्यात्मिक नेता के अवतार के रूप में नामित किया है. द टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार बच्चे को तिब्बती बौद्ध धर्म में तीसरे सबसे महत्वपूर्ण नेता के रूप में 10वें खालखा जेट्सन धम्पा रिनपोछे के रूप में मान्यता दी गई है. एक समारोह के दौरान दलाई लामा और उस बच्चे की फोटो को क्लिक किया गया था. सोशल मीडिया पर शेयर की गई तस्वीरों में देखा गया कि 87 वर्षीय दलाई लामा से एक बच्चा लाल वस्त्र और मास्क पहने मिल रहा है.
इस कार्यक्रम में दलाई लामा ने इस बच्चे को 10 वें खालखा जेटसन धम्पा रिनपोछे का पुनर्जन्म बताया है. बच्चे को दलाई लामा मंदिर में रीति-रिवाजों के तहत उसके माता-पिता के समक्ष गद्दी पर बिठाया गया. इस कार्यक्रम में 5,000 भिक्षुओं और भिक्षुणियों, 600 मंगोलियाई और अन्य सदस्यों ने हिस्सा लिया. दलाई लामा 1937 में जब दो साल की थे, तब उन्हें पिछले नेता के पुनर्जन्म के रूप में मान्यता दी गई थी.
यह समारोह मार्च की शुरुआत में धर्मशाला में हुआ था, लेकिन इसकी जानकारी बाद में समाने आई. मीडिया रिपोर्टों के अनुसार मंगोलियाई बच्चा अगुइदई और अचिल्टाई अल्टानार नाम के जुड़वां बच्चों में से एक है. हालांकि, दोनों में से कौन है अभी स्पष्ट नहीं है. बच्चे के पिता एक यूनिवर्सिटी में मैथ्स के प्रोफेसर हैं और उसकी दादी गरमजाव सेडेन मंगोलियाई संसद की सदस्य रही हैं. इनके माता-पिता का नाम अलतनार चिंचुलुन और मोनखनासन नर्मंदख है.
कृष्णाचार्य वंश से है बच्चे का संबंध
न्यूज एजेंसियों के मुताबिक दलाई लामा ने बच्चे की ओर इशारा करते हुए सभा को बताया- इनके पूर्ववर्तियों का चक्रसंवर के कृष्णाचार्य वंश के साथ घनिष्ठ संबंध था. उनमें से एक ने मंगोलिया में अपने अभ्यास के लिए एक मठ की स्थापना की, इसलिए आज उनका यहां होना काफी शुभ है.
मंगोलिया बच्चे को धर्मगुरु चुनना चीन के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है. दरअसल चीन तिब्बती बौद्ध धर्म की परंपरा में किसी अपने की नियुक्ति करना चाह रहा था. चीन घोषणा भी कर चुका था कि देश केवल उन बौद्ध नेताओं को ही मान्यता देगा जिसे चीनी सरकार चुनेगी. इसके पीछे उसकी मंशा थी कि वह तिब्बत में किसी विद्रोह की आशंका को दबा सके.

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