
अमेरिका ने रोकी फिलिस्तीन की UN सदस्यता, पहले भी रिजेक्ट हुई थी अर्जी, क्यों सारे देश संयुक्त राष्ट्र से जुड़ना चाहते हैं?
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फिलिस्तीन को संयुक्त राष्ट्र (UN) की पूर्ण सदस्यता के प्रपोजल पर अमेरिका ने वीटो लगा दिया. गुरुवार को हुई वोटिंग में मेंबरशिप के पक्ष में 12 देश थे. वैसे तो केवल 9 देशों का ग्रीन सिग्नल काफी है, लेकिन ये तभी काम करता है जब यूएनएस के परमानेंट सदस्यों में से कोई भी इसके खिलाफ न हो. अमेरिकी नामंजूरी ने फिलिस्तीन को एक बार फिर पक्की सदस्यता से दूर कर दिया.
संयुक्त राष्ट्र में इस समय 193 देश पूर्ण सदस्य हैं. फिलिस्तीन इसमें शामिल नहीं. वो साल 2011 में भी पक्की मेंबरशिप के लिए आवेदन दे चुका था, लेकिन तब भी सबकी सहमति नहीं बनी थी. आखिर क्या वजह है कि इस देश के लिए यूएन के दरवाजे अधखुले ही हैं. यहां समझिए.
हम तीन सवालों के जवाब खोजेंगे - फिलिस्तीन का फिलहाल क्या स्टेटस है और क्यों वो पूर्ण सदस्यता के लिए उतावला है. - कैसे मिल सकती है यूएन मेंबरशिप, क्या हैं इसके फायदे. - किन देशों के पास यूएन की सदस्यता नहीं है, और क्यों.
इस समय कहां खड़ा है फिलिस्तीन
ये अभी संयुक्त राष्ट्र का नॉन-मेंबर ऑबर्जवर स्टेट है. इसका मतलब ये है कि वो यूएन के सेशन्स में शामिल हो सकता है लेकिन सिर्फ ऊपर-ऊपर से. वो इसके किसी भी प्रस्ताव पर वोट नहीं डाल सकता. साल 2012 में फिलिस्तीन को ये दर्जा मिला था. वेटिकन सिटी भी यूएन के इसी दर्जे में शामिल है. इनके पास वैसे संयुक्त राष्ट्र की जनरल असेंबली में बोलने का भी हक रहता है ताकि वे किसी प्रपोजल या समस्या पर अपनी राय रख सकें और बाकी सदस्यों पर असर डाल सकें. इसके बाद ही वोटिंग होती है.
पूर्ण सदस्यता कैसे मिलती है फिलिस्तीन साल 2011 में भी पूरी मेंबरशिप के लिए अर्जी डाल चुका. लेकिन तब भी सहमति नहीं बन सकी थी. इस बार अमेरिका ने अड़ंगा लगा दिया. बात ये है कि फुल मेंबरशिप के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की 15 सदस्यीय जनरल बॉडी में से 9 की मंजूरी चाहिए. इसके साथ ही पांच परमानेंट सदस्यों की हामी भी चाहिए. अगर इनमें से कोई भी वीटो कर दे तो प्रस्ताव फेल हो जाता है.

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