अफगानिस्तान में भारत क्या खुद को बिना लड़े हारता देख रहा है?
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चीन ने अफगानिस्तान की सरकार और तालिबान दोनों से अच्छे संबंध रखे हैं. अगर अफगानिस्तान की सरकार जाती भी है और तालिबान सत्ता में आता है तो चीन के लिए सौदा करना मुश्किल होता नहीं दिख रहा है. दूसरी तरफ, भारत ने अनाधिकारिक रूप से तालिबान से बातचीत देर से शुरू की. भारत अफगानिस्तान की सरकार के साथ रहा और तालिबान को जैसे अमेरिका देखता था, उसी तरह से भारत भी देखता रहा.
अगस्त महीना भारत के लिए बहुत अहम होने जा रहा है. इस महीने ही भारत आजादी की 75वीं वर्षगांठ मनाने जा रहा है. इसी महीने अफगानिस्तान से नेटो और अमेरिकी सैनिक पूरी तरह से चले जाएंगे और जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म होने के दो साल भी पूरे हो रहे हैं. कहा जा रहा है कि इन तमाम अहम परिघटनाओं में भारत के लिए खुशी की बात यह है कि उसे अगस्त महीने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता मिली है. अफगानिस्तान और कश्मीर के मामले में कहा जा रहा है कि भारत को अध्यक्षता मिलने की टाइमिंग बहुत अच्छी है. पाकिस्तानी मीडिया में इस बात को लेकर चिंता जताई जा रही है कि जम्मू-कश्मीर से पांच अगस्त को अनुच्छेद 370 हटाने के दो साल पूरे होने के मौके पर पाकिस्तान चाहकर भी सुरक्षा परिषद में कुछ नहीं कर पाएगा क्योंकि कमान भारत के पास है. इसके अलावा, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की भूमिका अफगानिस्तान में भी अहम रहेगी. अफगानिस्तान का संकट भारत की विदेश नीति के लिए अभी सबसे बड़ी चुनौती है. पिछले हफ्ते मंगलवार को अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन जब भारत के पहुंचे थे तो तालिबान का एक प्रतिनिधिमंडल चीन के दौरे पर था.More Related News
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