Virus & Sons: कोरोना जैसे वायरस ऐसे करते हैं रिप्रोडक्शन, समझिए 3 साल से संकट क्यों नहीं खत्म हो रहा
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फलाने एंड संस... ढिमकाने एंड संस... ऐसे कई नाम सुने और देखे होंगे. वायरस भी अपने संस (Virus & Sons) के साथ दुनिया में टिके हुए हैं. करोड़ों सालों से उनके वंशज पूरी दुनिया में फैल रहे हैं. ये भी इंसानों जैसे रिप्रोडक्शन करते हैं. बस तरीका अलग है. वायरस के रिप्रोडक्शन का खेल बहुत कातिलाना है... आइए समझे इसे.
वायरस (Virus) का रिप्रोडक्शन कातिलाना क्यों होता है? बाकी जीव अपने वंश को बढ़ाने के लिए किसी की हत्या नहीं करते. किसी को मारते नहीं. किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते. लेकिन वायरस ये काम करता है. वायरस का रिप्रोडक्शन यानी ज्यादा संक्रमण. यानी वायरस का रिप्रोडक्शन बढ़ना यानी उसकी आबादी में इजाफा... सीधा नुकसान है. जितना ज्यादा रिप्रोडक्शन... उतना ज्यादा संक्रमण फैलना.
हम आपको बताएंगे कि कोरोना वायरस ही नहीं. बल्कि दुनिया में मौजूद सारे वायरस एक ही तरीके से रिप्रोडक्शन करते हैं. जैसे हम इंसान या कोई अन्य जीव करते हैं. लेकिन वायरसों के रिप्रोडक्शन का तरीका एकदम अलग है. किसी भी वायरस को रिप्रोडक्शन करने के लिए किसी साथी की जरुरत नहीं होती. यानी वायरस में नर होते हैं. न मादा. ये अपना ही क्लोन बनाते हैं. अपने ही शरीर से जेनेटिक मैटेरियल निकाल कर कई वायरस पैदा कर देते हैं.
इनके रिप्रोडक्शन की प्रक्रिया किसी परमाणु विस्फोट के चेन रिएक्शन की तरह होती है. एक से तीन, तीन से 9 और उसके आगे... बढ़ते रहते हैं. कोई भी वायरस सबसे पहले आपके शरीर में प्रवेश करता है. फिर वह टारगेट सेल (Cell) से चिपकता है. Cell के अंदर खुद जाता है या अपना जेनेटिक मैटेरियल छोड़ता है. जेनेटिक मैटेरियल उसी कोशिका के न्यूक्लियस में जाता है. न्यूक्लियस को खाकर उसमें मौजूद जेनेटिक मैटेरियल खुद को रेप्लीकेट करता है. यानी नए जेनेटिक मैटेरियल बनाता है.
जितना ज्यादा रिप्रोडक्शन, उतनी ज्यादा कोशिकाओं की हत्या
जितना ज्यादा जेनेटिक मैटेरियल उतने ज्यादा नए वायरस. कोशिका के अंदर मौजूद छोटे अंग इस रेप्लीकेशन में मदद करते हैं. यानी वायरस उस कोशिका को खत्म कर चुका होता है. अपने रिप्रोडक्शन के लिए कोशिका को मार चुका होता है. अब एक वायरस के कई रूप तैयार हो चुके होते हैं. यानी एक वायरस के अब कई संस (Sons) बन चुके होते हैं. ये बाहर निकलते हैं, दूसरी कोशिकाओं के साथ ही ऐसा ही करते हैं. यही प्रक्रिया पूरे शरीर में चलती रहती है. आप बीमार और बहुत बीमार होते चले जाते हैं.
अलग वैरिएंट यानी शरीर में कत्ल-ए-आम का अलग तरीका
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