No Confidence Motion: संसद में मणिपुर पर मौन तुड़वाने के मामले में मोदी से मात खा गया विपक्ष?
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विपक्ष की रणनीति के उलट संसद में तीन दिन चली बहस में जो हुआ वो देश ने देखा. सरकार ने इंडिया गठबंधन के मंसूबे भांपते हुए इस अविश्वास प्रस्ताव पर बहस को आपदा में अवसर बना लिया.
मणिपुर हिंसा पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसद में बयान पर अड़ा एकजुट विपक्ष जब सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आया तो वो इसे अपनी बड़ी रणनीतिक सूझबूझ बता रहा था. पीएम के बयान न देने और मणिपुर में चाहे गए नियमों के तहत बहस की इजाजत न मिलने के चलते इंडिया गठबंधन ने संसद के दोनों सदनों में कई दिन कामकाज ठप रखा. सरकार को झुकते न देख उसने अपनी मांग मनवाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव का रास्ता चुना. मकसद था अविश्वास प्रस्ताव पर बहस में मणिपुर को केंद्र में रखा जाए और फिर पीएम से उसका जवाब मांगा जाए. ऐसे में पीएम को मणिपुर पर अपना तथाकथित 'मौन' तोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ेगा. राजनीतिक जानकार भी इसे विपक्ष की सरकार को गुगली मान रहे थे. लेकिन तीन दिन की बहस में जो हुआ उसमें तस्वीर बिल्कुल उल्टी दिखी. पीएम नरेंद्र मोदी के शब्दों में कहा जाए तो सत्ता पक्ष इस गुगली पर चौके-छक्के उड़ाता रहा और विपक्ष नो बॉल-नो बॉल करता रहा. सवाल है कि आखिर ऐसा क्यों और कैसे हुआ?
गौरतलब है कि मणिपुर में कुकी और मैतेई समुदायों के बीच पिछले सौ दिन से नस्लीय हिंसा जारी है. इस हिंसा की आग में मणिपुर जल रहा है और उसकी तपिश देश-विदेश में महसूस की जा रही है. संसद का सत्र शुरू हुआ तो विपक्ष ने इसी मुद्दे पर सरकार को घेर लिया. विपक्ष एकजुट होकर पीएम मोदी के इसपर संसद के अंदर बयान की मांग कर रहा था. सरकार मणिपुर पर चर्चा के लिए तैयार थी लेकिन चर्चा किस नियम के तहत हो इसपर विपक्ष और सत्ता पक्ष में गतिरोध बना हुआ था जिसके चलते शुरुआत के कई दिन संसद के दोनों सदनों में कामकाज ठप रहा.
कोई रास्ता न निकलता देख विपक्ष ने अपनी रणनीति बदल ली. वो सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आ गया. अविश्वास प्रस्ताव के दो मकसद थे. एक तो सरकार को उसके पिछले चार साल के कामकाज पर घेरकर अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव की पिच तैयार करना, दूसरा मणिपुर को बहस को केंद्र में रखकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उसपर अपनी चुप्पी तोड़ने के लिए विवश करना. ये बेहद सूझबूझ भरी रणनीति लग रही थी. इंडिया गठबंधन बनने के बाद उसकी एकजुटता की परीक्षा भी इस अविश्वास प्रस्ताव पर बहस से हो जानी थी. कुल मिलाकर विपक्ष को पता था कि वो ये अविश्वास प्रस्ताव हारेगा लेकिन इस हार में अपनी जीत देख रहे विपक्ष नेता खुद को बाजीगर बताते नजर आ रहे थे.
विपक्ष की रणनीति के उलट संसद में तीन दिन चली बहस में जो हुआ वो देश ने देखा. सरकार ने इंडिया गठबंधन के मंसूबे भांपते हुए इस अविश्वास प्रस्ताव पर बहस को आपदा में अवसर बना लिया. उसने इस मौके पर भुनाते हुए अपने पिछले 9 साल के कामकाज का लेखा-जोखा जनता के सामने रखा. इसे इसी बात से समझा जा सकता है कि पीएम नरेंद्र मोदी जब लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव की बहस का जवाब दे रहे थे तब विपक्ष ने वॉकआउट कर दिया. किसी ने उनसे कहा कि अब कांग्रेस पर हमला करने से क्या होगा, अब तो उनमें से कोई सदन में सुन ही नहीं रहा, तब पीएम मोदी ने कहा-'देश सुन रहा है.' सत्ता पक्ष का मकसद भी देश को सुनाना था और इस मकसद में उसने अपनी तरफ से कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी.
सरकार ने मणिपुर पर बात की लेकिन विपक्ष की मांग और रणनीति के हिसाब से पीएम इस मुद्दे पर नहीं बोले. बल्कि बहस के दूसरे दिन गृहमंत्री अमित शाह ने मणिपुर को लेकर उठ रहे तकरीबन हर सवाल का जवाब देने की कोशिश की. गृहमंत्री ने अपने लंबे भाषण में मणिपुर के हालात और केंद्र व राज्य सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में विस्तार से बताया. यहां तक कि उन्होंने मणिपुर की जनता के नाम एकजुटता और शांति का लोकसभा से प्रस्ताव पास करने की भी मांग कर दी. विपक्ष उसके लिए तैयार नहीं हुआ वो पीएम के सदन में होने की मांग करता रहा. सरकार अपने इस प्रस्ताव से ये दिखाने में कामयाब रही कि विपक्ष मणिपुर के लोगों के लिए शांति की अपील तक करने के लिए तैयार नहीं है.
दूसरे दिन जब खुद प्रधानमंत्री संसद में बयान देने के लिए खड़े हुए तो उन्होंने मणिपुर को छोड़ तकरीबन हर मुद्दे पर विस्तार से बात की और विपक्ष पर तीखे हमले किए. उन्होंने कांग्रेसी सरकारों की ऐतिहासिक गलतियों पर देश के सामने रखा और अपनी 9 साल की उपलब्धियां भी जोर शोर से गिनाईं. विपक्ष जब उनके हमलों के जवाब में वॉकआउट कर गया तब मोदी ने मणिपुर पर भी अपनी बात रखी और वो इस दौरान नॉर्थ ईस्ट को लेकर कांग्रेसी सरकारों के रवैये पर निशाना साधते रहे. कुल मिलाकर मणिपुर पर बहस और पीएम मोदी के संबोधन की मांग कर रहा विपक्ष पीएम मोदी के मणिपुर पर बयान के दौरान ही उन्हें मैदान खाली देकर चला गया. पीएम ने भी इसका भरपूर फायदा उठाया.
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