Margaret Alva: पांच बार सांसद, केंद्रीय मंत्री और राज्यपाल...मार्गरेट अल्वा का ऐसा रहा कार्यकाल
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Opposition’s vice president candidate Margaret Alva: उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए एनडीए ने शनिवार शाम को पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया था. एक दिन बाद रविवार को शरद पवार के घर पर बैठक के बाद विपक्षी दलों ने मार्गरेट अल्वा को अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया है.
Opposition president candidate Margaret Alva:विपक्ष ने उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए मार्गरेट अल्वा को उम्मीदवार घोषित कर दिया है. एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने इनके नाम की घोषणा की है. कर्नाटक के मैंगलों में 1942 में 14 अप्रैल को जन्मी मार्गरेट राजस्थान की (12 मई 2012 - 07 अगस्त 2014) राज्यपाल रह चुकी हैं. उन्होंने 6 अगस्त 2009 से 14 मई 2012 तक उत्तराखंड की पहली महिला राज्यपाल के रूप में कार्य किया. उन्होंने वकील के तौर पर अपने करियर की शुरुआत. वह सामाजिक कार्यकर्ता भी रही हैं. 1999 में लोक सभा के लिए निर्वाचित होने से पहले मार्गरेट आल्वा 1974 से लागतार चार बार 6 साल के लिए राज्य सभा के लिए निर्वाचित हुईं.
वहीं मार्गरेट अल्वा ने ट्वीट कर कहा कि उपराष्ट्रपति पद के लिए विपक्ष के उम्मीदवार के रूप में नामित होना मेरे लिए सम्मान की बात है. मैं इस फैसले को बड़ी विनम्रता से स्वीकार करता हूं और मुझ पर विश्वास करने के लिए विपक्ष के नेताओं को धन्यवाद देता हूं.
राजीव गांधी सरकार में थीं मंत्री
1984 की राजीव गांधी सरकार में आल्वा को संसदीय मामलों का केंद्रीय राज्य मंत्री बनाया गया. इसके बाद उन्हें मानव संसाधन विकास मंत्रालय में युवा मामले व खेल, महिला एवं बाल विकास का प्रभारी मंत्री भी बनाया गया. 1991 में कार्मिक, पेंशन, जन परिवेदना, प्रशासनिक सुधार (प्रधानमंत्री से सम्बद्ध) की केंद्रीय राज्य मंत्री बनाई गईं.
10 संसदीय समितियों में रहीं शामिल
मार्गरेट अल्वा करीब 30 साल तक सांसद रहीं. इस दौरान वह संसद की महत्वपूर्ण समितियों व सार्वजनिक निकायों की समिति (सी.ओ.पी.यू.), लोक लेखा समिति (पी.ए.सी.), विदेश मामलों की स्थायी समिति, पर्यटन और यातायात, विज्ञान एवं तकनीकी, पर्यावरण व वन तथा महिला अधिकारों की चार महत्त्वपूर्ण समितियां- जैसे दहेज निषेध अधिनियम (संशोधन) समिति, विवाह विधि (संशोधन) समिति, समान पारिश्रमिक समीक्षा समिति व स्थानीय निकायों में महिलाओं के 33 प्रतिशत आरक्षण के लिए 84वें संविधान संशोधन प्रस्ताव के लिए बनी संयुक्त चयन समिति में रहीं. 1999 से 2004 तक महिला सशक्तीकरण की संसदीय समिति की सभापति रहीं.
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