
Gandhi Jayanti Special: एक आध्यात्मिक मुलाकात की अपूर्ण इच्छा! उस दिन की कहानी जब विवेकानंद से मिलने निकले थे गांधी
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राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को आंदोलनकारी के रूप में, अहिंसक क्रांति के अग्रदूत और सत्याग्रह के पुजारी के रूप में तो सब जानते हैं लेकिन उनके जीवन के आध्यात्मिक पहलू कम अहम नहीं है. गांधी के जीवन का एक सिरा भारत की सनातन परंपरा और अध्यात्म से भी उतना ही जुड़ा हुआ था, जितना कि आजादी के आंदोलन से. बल्कि अहिंसक क्रांति की प्रेरणा के लिए गांधी हमेशा अध्यात्म को अपना पावरहाउस मानते थे.
...वे दोनों दो दुनिया या अलग-अलग युगों के वासी तो नहीं थे लेकिन एक आकाशगंगा के दो ध्रुव जैसे जरूर थे. जो एक-दूसरे से परे नहीं तो एक-दूसरे के बिना अधूरे जरूर थे. दोनों जागृत भारत के, सशक्त और संबल भारत के प्रतीक थे. दोनों अपने-अपने क्षेत्रों के महारथी थे. उनके जन्म के काल में अंतर भी सिर्फ 6 साल का था. एक आजादी के आंदोलन का सेनानी तो दूसरा धर्म और दर्शन की दुनिया का जगमगाता तारा...
हम बात कर रहे हैं स्वामी विवेकानंद और महात्मा गांधी की. स्वामी विवेकानंद का जन्म साल 1863 तो महात्मा गांधी का जन्म 1869 में हुआ था. दोनों समय के साथ दो अलग-अलग पथ पर बढ़ चले. एक ने भारत के ज्ञान से पश्चिमी दुनिया को परिचित कराया तो दूसरे ने पश्चिमी दुनिया में ज्ञान हासिल कर भारत में लोकतंत्र की विचारधारा को जन-जन तक पहुंचा दिया. दोनों ने गुलाम भारत में आजादी की ललक पैदा की और जनता की क्रांतिपरक भावनाओं को स्वर दिया. लेकिन सामाजिक-धार्मिक और राजनीतिक क्रांति से अलग एक और चीज है जो इन दोनों हस्तियों को जोड़ती थी. वो थी अध्यात्म की ताकत. जिनमें दोनों ही सिद्धहस्त थे. लेकिन क्या कभी इन दोनों महान शख्सियतों की आमने-सामने मुलाकात हुई?
महात्मा गांधी उस दौर का जिक्र अपनी आत्मकथा 'माई एक्सपेरिमेंट विद ट्रुथ' में करते हैं. तब महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह करके भारत आए थे. तब देश में गांधी को कम ही लोग जानते थे. अपने राजनीतिक गुरु गोपालकृष्ण गोखले के साथ वे कांग्रेस से जुड़े और 1901 में कोलकाता कांग्रेस अधिवेशन के लिए पहुंचे थे. वे 1901 में जब कोलकाता पहुंचे तो उनकी तीव्र इच्छा थी कि स्वामी विवेकानंद जैसे ज्ञानवान शख्सियत के साथ जरूर मिलें.
महात्मा गांधी के राजनीतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले कहते थे- विवेकानंद एक ऐसे संन्यासी हैं, जो भारत की आत्मा को जगाने वाले हैं. गांधी उस समय दक्षिण अफ्रीका में रहते थे और भारत आए उन्हें ज्यादा दिन नहीं हुए थे. लेकिन स्वामी विवेकानंद को लेकर एक अदृश्य लेकिन गहरा जुड़ाव मन में जरूर था.
क्या चीजें जोड़ती थीं?
स्वामी विवेकानंद और महात्मा गांधी दोनों की ताकत आध्यात्मिक थी, खुद पर प्रयोगों की थी और विचार मानव सेवा की भावना से अतप्रोत थे. व्यावहारिक वेदान्त और सेवा धर्म की भावना दोनों को एक जगह लाकर जोड़ती थी. स्वामी विवेकानंद वैदिक ज्ञान के प्रबल समर्थक थे. उन्होंने 'दरिद्र नारायण की सेवा' यानी गरीबों में ईश्वर के दर्शन का सिद्धांत दिया. उनके लिए, वेदान्त का सार केवल चिंतन में नहीं, बल्कि उसे गरीबों और पीड़ितों की सेवा के माध्यम से व्यवहार में लाना था. वहीं महात्मा गांधी का भी मानना था कि ईश्वर को प्राप्त करने का मार्ग केवल मानव सेवा से होकर जाता है, खासकर गरीबों और दलितों की सेवा से. उन्होंने अपने राजनीतिक और सामाजिक कार्यों को आध्यात्मिक साधना का हिस्सा माना.

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