AAP ने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के प्रस्ताव का किया कड़ा विरोध, संविधान के लिए बताया खतरा
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आम आदमी पार्टी की वरिष्ठ नेता आतिशी ने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया है. यह गैर संवैधानिक और लोकतंत्र के सिद्धांत के खिलाफ है. इसे लागू करने से हमारे देश के लोकतंत्र को भारी नुकसान होगा. आप ने इसके लिए लॉ कमीशन को चिट्ठी लिखी है जिसमें उन्होंने इससे होने वाले नुकसानों के बारे में बताया है.
आम आदमी पार्टी ने केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के प्रस्ताव का पुरजोर विरोध करते हुए लॉ कमीशन को 12 पेज में अपनी राय रखी है. पार्टी की वरिष्ठ नेता आतिशी ने कहा कि आम आदमी पार्टी ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के प्रस्ताव का विरोध करती है. यह गैर संवैधानिक और लोकतंत्र के सिद्धांत के खिलाफ है. इसे लागू करने से हमारे देश के लोकतंत्र को भारी नुकसान होगा.
आम आदमी पार्टी विधायक आतिशी ने कहा कि भाजपा ने पहली बार 2017 में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का प्रस्ताव देश के सामने रखा. ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ यानी केंद्र सरकार व राज्य सरकारों का चुनाव एक साथ होना चाहिए और पांच साल के अंतर के बाद ही अगला चुनाव होने चाहिए. इस प्रस्ताव को लॉ कमीशन के सामने रखा गया. साल 2018 में लॉ कमीशन ने अपनी एक रिपोर्ट देश के सामने पेश की, जिसमें लॉ कमीशन ने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के प्रस्ताव को अपना समर्थन दिया. दिसंबर 2022 में लॉ कमीशन ने सभी राजनीतिक दलों को अपनी रिपोर्ट भेजी और उसपर उनकी राय मांगी. आम आदमी पार्टी ने भी ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ के प्रस्ताव पर अपनी राय रखी है.
AAP ने जताया कड़ा विरोध
आप की वरिष्ठ नेता आतिशी ने कहा कि जब ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ की बात होती है और जब सबसे पहले कोई भी यह बात सुनता है, तो उसे लगता है, यह ठीक बात है, तार्किक भी है. इसमें क्या हर्ज है. जब हमारे देश में हर कुछ महीने में कहीं न कहीं चुनाव होते रहते हैं, तो इसमें क्या हर्ज है कि अगर सारे चुनाव एक साथ हो जाएं. लेकिन जब ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के प्रस्ताव को हम गहराई से जांचते हैं, तो कई बहुत चिंताजनक तथ्य और सैद्धांतिक मुद्दे सामने आते हैं कि किस तरह से अगर ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ लागू हो जाए तो इस देश के लोकतंत्र को बहुत भारी झटका लगेगा. इसलिए आम आदमी पार्टी ने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का सख्त विरोध करते हुए लॉ कमीशन को लिखित में अपनी राय सौंपी है. आतिशी ने कहा कि भारत के संविधान में मूल संरचना, एक ऐसा संवैधानिक सिद्धांत है, जिसको सुप्रीम कोर्ट की 13 सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने केशवानंद भारती केस में स्थापित किया था. इसमें लिखा है कि केंद्र सरकार ऐसी कोई भी कानून या पॉलिसी नहीं ला सकती है, जो इस देश के संविधान की मूल संरचना का हनन करे. हमारे देश में संविधान का जो मूल ढांचा है, वो सरकार का संसदीय रूप है. सरकार के संसदीय रूप में कई तरह के जवाबदेही शामिल होती है.
AAP ने बताया यह बड़ा कारण
लेकिन जब आप ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ की बात करते हैं और कहते हैं कि केंद्र और राज्य की सरकार की चुनाव एक समय पर होगा. ऐसे में जो लोग केंद्र में अलग और राज्य में अलग पार्टी को वोट देते हैं, तो जब चुनाव एक साथ होता है और प्रचार एक साथ होता है, तो चुनाव में अलग-अलग मुद्दों की बात करना, उठाना और जनता के लिए सही निर्णय लेना मुश्किल हो जाता है. ऐसे बहुत सारे लोग हैं, जो केंद्र के चुनाव में एक पार्टी को वोट देते हैं और राज्य में दूसरी पार्टी को वोट देते हैं. क्योंकि केंद्र की सरकार के मुद्दे अलग हैं और राज्य की सरकारों के गवर्नेंस के मुद्दे अलग हैं. यह लोगों का एक लोकतांत्रिक अधिकार है कि हम राज्य के मुद्दों पर एक राय रखें और केंद्र के मुद्दे पर एक दूसरी राय रखें.
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